Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 509
________________ परिशिष्ट २ (ख) ८1८ तथा वें अध्ययन का पदानुक्रम ४६५ ण तत्थ अवलंबए ण में देहे परीसहा णाओ संगामसीसे वा णाणुगिद्धे रसेसु अपडिणे णातिवेलं उवचरे णाभिभासे अभिवायमाणे णायपुत्तेण साहिए णिक्खम्म एगदा राओ णिक्खम्म एगया राओ णि पि णो पगामाए णिसिएज्जा य अंतसो णो अवलंबियाण कंधंसि णो चेविमेण वत्थेण णोपमायं सई पि कुम्वित्था णोवि य कंडूयये मुणी गायं णो वि य पावगं सयमकासी णो सुगरमेतमेगेसि णो सेवती य परवत्थं णो से सातिज्जति तेइच्छं तं अकुब्वं वियर्ड भुंजित्था तं कायं वोसज्जमणगारे तं पडिबुज्झ माहणे तं पडियाइक्खे पावगं भगवं तं वोसज्ज वत्थमणगारे तं बोसज्ज वत्थमणगारे तंसिप्पेगे अणगारा तंसि भगवं अपडिण्णे तं "हंता हंता" बहवे कंदिसु ॥ तणफासे सीयफासे य तणाई संथरे मुणी ततो उक्कसे अप्पाणं तसकायं च सव्वसो णच्चा तसजीवा य थावरत्ताए तस्सेव अंतरद्धाए तहावि से अगरिहे तितिक्खं परमं णच्चा तिप्पमाणेऽहियासए तुसिणीए स कसाइए झाति ते अहियासए अभिसमेच्चा तेउकायं च वाउकायं च तेउफासे य दंस-मसगे य तेसप्पत्तियं परिहरतो यंडिलं पडिलेहिया का।१८ दादा२१ ९।३८ ९।११२० ८1८1८ ९।१८ ८।८।१२ ९।२।१५ ९।२।६ ९।२।५ ८।८।१६ ९।११२२ ९।१२ ९।४।१५ ९।११२० ९।४।८ ९।१८ ९।११९ ९।४।१ ९।१।१८ ९।३७ दादा२४ ९।१११५ ९।११४ ९।११२२ ९।२।१३ ९।२।१५ ९।११५ ९।३।१ ८1८७ ८।८।१८ ९।१११२ ९।१।१४ ८1८६ ८।८।१४ ८।८।२५ ८।८।१० ९।२।१२ ९/३१७ ९।१११२ ९।३।१ ९।४।१२ ८८७ थंडिल मुणिआ सए दंडजुद्धाई मुट्ठिजुद्धाई दंत-पक्खालणं परिण्णाए दवियस्य वियाणतो दिव्वं मायं ण सद्दहे दुक्खसहे भगवं अपडिण्णे दुच्चरगाणि तत्थ लाहिं दुवालसमेण एगया भुंजे दुविहं पि विदित्ताणं दुविहं समिच्च मेहावी दुहतोवि ण सज्जेज्जा निधाय दंड पाणेहिं पंतं सेज्ज सेविसु पंथपेही चरे जयमाणे पग्गहियतरगं चेयं पडिणिक्खमित्तु लूसिंसु पडिसेवमाणे फरुसाई पणगाइं बीय-हरियाई पणियसालासु एगदा वासो परक्कमे परिकिलंते परपाए वि से ण भुंजित्था परिवज्जियाण ओमाणं परिवज्जिया ण विहरित्था परीसहाई लुचिसु पलालपुंजेसु एगदा वासो पसारित्तु बाहुं परक्कमे पाणा देहं विहिंसंति पारए तत्थ से महावीरे पिहिया वा सक्खामो पिहिस्सामि तसि हेमंते पुट्ठपुव्वा अहेसि सुणएहिं पुढे वा से अपुढे वा पुट्ठो तत्थहियासए पुट्ठो तत्थहियासए पुट्ठो वि णाभिभासिंसु पुढवि च आउकायं पुन्वट्ठाणस्स पग्गहे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे पेहमाणे समाहिं अपडिण्णे पेहमाणे समाहिमपडिण्णे फरुसाई दुत्तितिक्खाई फासाइं विरूवरूवाई ८ामा१३ ९।११९ ९।४।२ ८।८।११ दादा२४ ९।३।१२ ९।३१६ ९।४७ ८।८।२ ९।११६ ८.८।४ ९।३१७ ९।३।२ ९।१२१ ८।८।११ ९।३।९ ९।३।१३ ९।१।१२ ९।२।२ ८।१६ ९.१११९ ९।१११९ ९।१।१३ ९।३।११ ९।२।२ ९।१२२२ ८।८।१० ९।३।८ ९।२।१४ ९।१२ ९।३।६ ९।४।१ ८८1८ ८1८1१३ ९।१७ ९।१।१२ ८।८।२० ९।२।११ ९।४७ ९।४।१४ ९।११९ ९।२।१० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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