Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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४७४
लोग
लोभमति, ममत्व संज्ञा ० परिग्रह, पदार्थासक्ति
लोकप्रवाहसम्मत, विषयाभिमुखता
शरीर
लोय - जगत्,
लोयसंजोय-स्वर्ण आदि पदार्थ तथा परिवार का
संयोग
लोयालोयपवंच - लोक का दृष्ट प्रपंच बंकसमायार - मायापूर्ण आचरण
काणिकेय - माया के आधारभूत
वक्खायरय - सूत्रागम और अर्थागम में लीन भूमि-अनार्य देश
बट्टमा वर्तुलाकार मार्ग
वडमत्त - पृष्ठग्रन्थि का बाहर निकलना
वण्ण यश, रूप • संयम
बण्णाएसि वशलिप्सु
वत्थु - आच्छादित भूमि, गृह आदि वत्थग (दे ) -- वस्त्र का भाव
वय -अवस्था
• संसार, गतिचक्र
ववहार - व्यपदेश, विभाग
वसट्ट - इन्द्रिय विषय तथा कषाय की अधीनता से
पीडित
वीतराग संयम
वसुम - संयमी
वासग-स्थलचर प्राणी
विअंतिकारय – अन्तक्रिया करने वाला, सम्पूर्ण कर्मक्षय
करने वाला
विओवाय - व्यवपात,
गिरना
विगिचमाण - विवेक करने वाला
विगह शरीर
विषय - आचार,
अनुशासन
विणयण्ण - आचार तथा अनुशासन का ज्ञाता
वितद्द - संवर धर्म के प्रतिकूल वितिगिच्छ समावन्न शंकाशील
वितिगिच्छा - आशंका
वितिमिस जन-संकुल
विद्दायमाण - अपने आपको विद्वान् मानने वाला विधूतकप्प - धुताचार की साधना करने वाला
• धुत का आचार
विपरिसिह भोज के बाद बची हुई सामग्री
विप्पणोल्लए -- समभाव से सहन करे दिपरामुख हिंसा करता है
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२।१५९
२।१८४
३।२५
५।५३
२।१६९
३७०
५।५८
४|१६
५।१२२
९।३।२
५।१२२
५।५४
५५३
दादा२३
५।५३
२५७
९/१४
२।१२
२।१५२
३।१८
६।९५
६।३०
१।१७४
६।१२
८।६०
६।११३
३।७९
५।२१
१।१७१
२।११०
६।९२
५।९३
३।५४
९ १४६
८८७
३।६०
६॥५९
२/६७
५।२६
२।१५०
विपसाय - चित्त की प्रसन्नता, चित्त की निर्मलता विपिया (३) चित
विभए विभज्यवाद से कथन करना
विमोह - अनशन
विमोहायतण - प्राण- विमोह की साधना का आयतन अर्थात् अनशन
aियड (दे ) – प्रासुक, निर्जीव
विराग वैराग्य, चित्त की वितृष्णावस्था, निर्वेद विषिता ग्रामपातक
विवित्तजीवि - राग-द्वेषमुक्तजीवी, एकान्तजीवी विवेग निर्ममत्व
विसोत्तिया-चित्त की चंचलता
(३) पृथ
विस्से णि - छिन्न
विह (वे) आकाश, फांसी वीर-पराक्रमी, सहिष्णु
बुड्ढ – बुढापा
वेयव - शास्त्रज्ञ
वेयवि -- शास्त्रविद् संकमण-सेतु
संघडि (वे) - जीमनवार संग-राम-द्वेष, बंधन
० राग
० आसक्ति, शांति का विघ्न संगंथ --- स्वजन का स्वजन
संगामसीस-युद्ध का अग्रिम मोर्चा
संघड (वे ) -- निरंतर
संघडवंसि - प्रतिक्षण उपयुक्त, सतत जागरूक
संघाडि कंबल आदि वस्त्र
संतदत्तर - एक अन्तर वस्त्र और एक उत्तरीय वस्त्र
संति - निर्वाण, बाधारहित प्रवृत्ति
संथय-सहवासी
संधि - विवर
आचारांग भाष्यम्
o
• हड्डियों की जोड़
• अभिप्राय
• अतीन्द्रिय चेतना में हेतुभूत कर्म - विवर
• शरीरवर्ती करण चैतन्य- केन्द्र, चक्र
• ज्ञान दर्शन - चरित्र की समन्वित आराधना
संपमारय
मूर्च्छा संवाहण - मर्दन
2
संवाहा बाधा, परीषह उपसर्ग संविद्धपह स्वीकृत मार्ग से अच्युत संसोहण - विरेचन
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}
३।५५
६।१०९
६।१०१
२५
८।६१ ९।१।१८
३। ५.७
२।१४
३।३८
५।४७
१।३६
८१०७
६/६८
८५८
६।९८
३।२६
३१४
४५१
२६१
९।१।१९
११७३
३।६ ६।१०८ २२ ६।११३
४५२
४५२
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२२
२।१०६ २।१२७
३।५१
५।२०
५।३०,४१
१।३०
९/४/२
५।६५
५.५०
९/४/२
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