Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 587
________________ वर्गीकृत विषय-सूची ५४३ संसार ११११८-१२२ का अर्थ ५१९ ज्ञान ५२९ सत्य का अनुशीलन ३१६५; ५।११६ के अर्थ ३४. के लिए मध्यस्थ भाव ५२९७ सूत्र पृ. १६१ से मृत्यु का अन्त ३१६६ समता और गोत्रवाद २।४९-५२ का अर्थ ३१३,५५, ५४० अनुपालन १४० की सिद्धि के उपाय पृ. १०-११ के प्रकार पृ.६ चित्त की प्रसन्नता का हेतु ३३५५ सामायिक के तीन प्रकार २४० समत्वदर्शी का आहार श६० समनुज्ञ के साथ व्यवहार ८।२९ सम्यक्त्व अहिंसा सिद्धान्त की परीक्षा ४।१६-२६ और मौन का अविनाभाव १५७ सम्यग् दर्शन ४।४।। का फल ४१५२-५३ की विदिशा २५४ और प्रमाद ५।२४ प्रवर्तक वचन-अनार्य वचन ४।२१ की कल्पना भिन्न-भिन्न ५२२५ प्रयोजन १११३०,१३५,१४०%; के आस्वादी प्राणी २।६३-६४ २।४३-४५, १४३,१५१, ५२ एकार्थक शब्द १२१२१ मूल ३२१ प्राणी का इष्ट १११२१,१२२ विवेक १२३१-३४,६२-६५,१०६, सुप्त ११५,११७,१४२-१४४,१५७, और जागृत ३।११-१३ १६५,१६८, २१४६-४८; ३३५३ के प्रयोग का निषेध २०४६ के अज्ञान में वृद्धि ३२ प्रकार ३११ विषय में अन्य मत ४।२० ५१००।८।११-१३ परतन्त्र ३११० संकल्प का निषेध ११७० २।१५३ में विशिष्ट पुरुषार्थ नहीं ३।८ जलकायिक की, देखें-जलकायिक जीव सेवा त्रसकाय की, देखें-त्रसकाय जीव की प्राचीन परम्परा ८७६ पृथ्वीकायिक की, देखें-पृथ्वीकायिक के विभिन्न प्रकल्प ८।११६-१२४ जीव निमित्त भिक्षु की प्रतिज्ञाएं ८७७ प्रयोजनवश या निष्प्रयोजन ५११ फल का प्रतिपादन ४।१९ की वशवर्तिता का परिणाम २।९०-९४ में आतंक का दर्शन ३।३३ परीषह में मुनि का कर्तव्य ८।५७-६१ लीनता से गतिचक्र ४।१० वनस्पतिकाय की, देखें-- वनस्पतिका छेदन ३४९ कायिक जीव निरोध ३.५० वायुकायिक की, देखें- वायुकायिक साक्षात्कार ॥१२० जीव के अर्थ ३१६ समर्थक दार्शनिकों से प्रश्नोत्तर ४१२५प्रकार ५।११८ विस्रोतसिका का परिहार १।३६ से उपरत ४।४७,४८ स्त्री एवं पुरुष के २।१३० विरति १।१७,३२,१२१,१२२, हिसा १४९-१५०, ३।३,५१-५२ अग्निकायिक की, देखें-अग्निकायिक जीव हिंसानुबंधी चिकित्सा आमोद प्रमोद के लिए ३३२ और चिकित्सक २११४२,१४३ एक का अतिपात सबका अतिपात संयम में सावधानी २।१४८% २११५० ६२१,२३ करने वाले के प्रति दया ८।१९ करानेवाला 'बाल' २२१४५-१४६ कर्म से अलिप्त २।१८० का निषेध २।१४७, ६२१-२३ का परिणाम १२२३,२५,४६,४८,१०५, से कर्मोपशम नहीं ६।१९-२० १०७,१३२,१३४,१५६,१५८ महान भय ६।२२ स्रोत २६ के अधिकार प्र. २०३ पर विमर्श पृ. २०३-२०५ सम्यक् का हेतु मध्यस्थता ५०९६ के निक्षेप पृ. २०३-२०४ सर्वज्ञवाद की चर्चा पृ. १६१ और अशरणता २०२२ आसक्ति २१७८-७९ दुःख अपना-अपना २५२ दुःख का विवेक पृ.७ पदार्थ २१८८ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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