Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 585
________________ ५४१ वर्गीकृत विषय-सूची द्वारा प्राणियों को क्लेश ६।१३ बन्धन-मुक्ति की खोज २११८१-१८२ के विधि-निषेध का ज्ञान २११८३ पाश का विमोचन ३१२९ ब्रह्मचर्य इन्द्रिय जय की साधना ५७५ और अपरिग्रह की अनुस्यूति ५।३५ का अर्थ पृ. १५; ४।४४; १३५ काम चिकित्सा के उपाय ५७८-८४ मुक्ति के आलम्बन सूत्र ५८५-८६ की रक्षा के लिए प्राण विसर्जन ८५७-६१ के आलम्बन सूत्र ५१७६-७७ गुरुकुलवास के लाभ ५२९९ मैथुनसेवी की मूर्खता ५।११ ब्रह्मचारी के कर्तव्य और अकर्तव्य १८७ ब्रह्मवान ३।४ मन साधना पद्धति के मूल तत्व पृ. १६२ मृत्यु के परीषह और उपसर्ग ९।१३, कर्म समारम्भ का हेतु ११० ९।२७-१५; ९।३।१-११ ग्लान द्वारा प्राण विसर्जन ८८२-४४ द्वारा सेवित निवास ९।२।१-३ जीवन की कसौटी ६।११३ ध्यान और समाधि ९।११५,६,७; ब्रह्मचारी द्वारा प्राण विसर्जन ९।२।४,११,१२, ९।३।१२,१३, ८.५७-६१ ९।४।३,१४-१६, पृ. ४०८, पृ. ४०९ मुनि पर वैज्ञानिक मत २।४ और पंडित ११११,१२ सूत्रकार का मत २।४ का अर्थ ३।१ शाश्वत की ओर गति २०६२ __ अहंकार एवं हेतु ६।८७ संबोधि का आलम्बन ४११६ की निन्दनीय प्रसिद्धि ६९६ समाधि मरण ८।१२५-१२८3८1८१ प्रशंसात्मक प्रसिद्धि ६।९७ देखें-अनशन के लिए करणीय ५१४४ मेधावी आस्रव-पंक में निमग्न ६।९२ अरति का निवर्तक २७ जागृत, अमुनि सुप्त ३।१ आगम में श्रद्धा ३१८० जीवन का परम धर्म ६।९९ का अर्थ ११७० तीर्ण, मुक्त एवं विरत २।१६५,५२६१, मोह अप्रमाद और महामोह २।९४ दृढ़धर्मा ६॥३६ और विषयासक्ति २१३३ द्वारा परीषह-सहन ३।६९ विसर्जन का आलम्बन ।' परुष आचरण ६७७-७८,८०, मोहावृत मनुष्य का अज्ञान २८९ परुष आचरण के हेतु ६७९ मोहासक्ति से भवचक्र ५१६-८ पुनः शृगाल वृत्ति का आचरण ६९४ और उसका सम्यक् अनुपालन ५८८ यश की कामना का निषेध ५।५३ सम्यक्त्व का अविनाभाव ५।५७ धर्म का पालन ६१४८ का अर्थ एवं अनुपालन २११०३५।३८ धर्मविद् और ऋजु ३५ की साधना की योग्यता ५५८ मन्दमति की मूर्खता ६८१ वीरवृत्ति से प्रवजित ६।९३ का मूल ६.१६ संयम से अनुद्विग्न ६।११० की उत्पत्ति, उपभोग में बाधक २०१९ मुनि के पर्याय के उन्मूलन में चिकित्सा ६१९-२० अनिदान ८।१६ कारण तिरस्कार २७६ ऋजु ३३५ सोलह रोग ६ त्रोटक ६११२ लोक दृष्टिमान ३७०, ६१०७ का ज्ञान २।१५९, ३३२५ नायक २।१७० तात्पर्य १२९६ निग्रन्थ ३७ के वृत्त को देखना ५।३२ पण्डित ६१७३; ८।३१ परिज्ञातकर्मा १२१२ को भिन्न दृष्टि से देखना श५० विचय का अर्थ पृ. ८५ पारगामी ६।११३ लोकवादी १५ महामुनि ६।३७ मेधावी ११७० लोकसंज्ञा वीर २१६० मौर लोक २११५९; ३१२५ ८८,८९ का त्याग १८४ की दो विशिष्ट अवस्थाएं २।१६० मनोवृत्ति ११९-१० का परिष्कार २८७ युद्ध की पृ. २३६ महावीर और अचिकित्सा ९।४।१,२ आसन ९।४।४,१४ आहार ९।११८-२००९।४।१, मौन रोग तपस्या ९।४।४-७,१६, पृ. ४०९ निद्रा ९।२।५,६९।४।६, पृ. ४०९ वस्त्र ९।२२,४,१९,२२ का आचरण पृ. ४०८ दर्शन ५।६७,१०८-१०९ मार्ग दुरनुचर ४१४२ विहार ९।१११,१२,१३, ९।३२,५; ९।४।३ की गमन विधि ९।१।२१ गृहवासी साधना ९।११११ मौन साधना ९।२।१०,११; ९।४।३, पृ. ४०९ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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