Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

View full book text
Previous | Next

Page 581
________________ वर्गीकृत विषय-सूची के क्रय-विक्रय का निषेध २०१०९ पचन-पाचन का प्रयोजन २।१०४ लाभ-अलाभ में समता २।१०१ १०३, ११४-११५ संग्रह और ममत्व का निषेध २।११६-११७ ग्रहण का निषेध २।१०७-१०८ ग्रहण की व्यवस्था २।१०६ दूषित का वर्जन ८।३८,७५ आहार-संयम २११६४ से जीवन यात्रा ३३५६ इंद्रिय और अतीन्द्रिय चेतना श२ इन्द्रियातीत का साक्षात्कार २६७ की मूढ़ता १६ ग्रहण शक्ति की क्षीणता २।४ चक्षु और श्रोत्र की प्रधानता १९५ चेतना श२ जयी, मैथुन से विरत ५१० विषय की आसक्ति से जन्म-मरण ५।१२१ में आसक्ति का परिणाम ४।४५ विषयों का आसेवन २।१८६ की मूर्छा १९५ सुख और दण्ड की व्याप्ति ५८५ सुखों की पराधीनता २८६ गच्छनिर्गत मुनि की एषणा-विधि को कृश करना ४४४ ६५३ क्षीण करने के उपाय पृ.८-१० निरालम्बी होने में समर्थ मुनि श१११ कर्म-समारम्भ प्रतिमा व अचेलत्व की योग्यता की परिज्ञा १७,११ ६७४-७५ के हेतु १२१० में अव्यक्त के होने वाले दोष ५।६२-६५ कषाय देखें-अव्यक्त मुनि का क्षपण वमन ३१७७ श्मशान प्रतिमा और परीषह निरोध ३१७३ ६५५-५८ वमन ६।१११ के प्रकार एवं अर्थ ३७१ का अर्थ १०१२; ३३५; ४१५१ वमन के प्रकार ३१७६ निरीक्षण ३२०,२२ क्षय की प्रक्रिया ३१७९ पीड़न ४१४० मुक्ति, साधक का उद्देश्य ३७१ बन्ध और विवेक ५७१-७४; विरति ३७१-८७ ९।१११८ विरेचन ३७२ भेदन ३३७३,८६ क्रोध की अवन्ध्यता ४।५१ का क्रमिक दर्शन और छेदन उपशांति २।१५५ ३८३-८४ गवेषणा ३२७ विवेक ४।३४ परिज्ञा पृ.६ से कष्ट एवं रोग ४३६-३७ परिज्ञा के उपाय २११७३ मानसिक दुःख ४१३५ के प्रत्याख्यान से तात्पर्य १८४१५१ लोभ दुःख का हेतु २०१७२ अलोभ से पराजित २।३६ विषयक धारणाएं ४।५१ . में प्रवृत्ति का हेतु २११३४ से उपाधि ३।१९ से अभिभूत पुरुष ३४२ हिंसा का मूल ३१२१ कर्मक्षय इच्छाकाम और मदनकाम के का उपाय ४१३२ निमित्त ६।१०९ का परिहार २।१३२ के लिए धृति ३४० स्वरूप ६।३४ कर्मबंध, देखें-कर्म की अनासक्ति २।१२१ ऐहिकभवानुबन्धी ७२ दुस्त्यजता २।१२१ की विचित्रता ५७१ के दुरतिक्रमण के दो हेतु २२१२२-१२३ निलेपतावाद १८० कर्मवाद दुष्परिणाम श८५-८६ प्रकार २।१२१ के रहस्य ४११२ चिन्ता का परिणाम २।१३८ कर्मवादी १२५ पृ. २५ मार-मदनकाम ५३ कर्मविपाक का निदर्शन २०५४ में आसक्त-हिंसा में प्रवृत्त २।१०० की गवेषणा २१५५ निमग्न न होने का समाधान २।३६ के अज्ञान से भव-भ्रमण २०५६ महाश्रद्धा वाले का आचरण २।१३७ कर्मशरीर वासना का उदय ५८४ के धुनने के उपाय २११६३, १६४; काम-आसेवन ५५९ के लिए आश्रवों में प्रवृत्ति ५।१० ई पथ और महावीर ९।११२१ की विधि २६९-७० समिति से युक्त के कर्मबन्ध १७१ उपकरण, देखें-वस्त्र-पात्र उपधानश्रुत अध्ययन के अर्थाधिकार पृ. ४०७-४०८ का अर्थ पृ.४०७ और अमरत्व ३।१५ का अर्थ ३१५ एकाकी/एकलविहार अप्रतिबद्धविहारी ६५४ एकचारी भी धर्म से अनजान ॥१७ की चर्या ६१५२-५८ चर्या का स्वीकार ६३५२ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590