Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 579
________________ वर्गीकृत विषय-सूची अध्यात्म अनुप्रेक्षा' का अर्थ १।१४७ आधारभूत तत्त्व ४८ चिन्तन में सार पृ. २३६ शास्त्र का महत्त्व पृ. २३७ साधक का व्यवहार २०११८ अनगार अग्निकायिक जीव का वेदना-बोध १०८२-८४ समारम्भ १८६ के शस्त्र ११७३ दीर्घलोक का शस्त्र ११६७ अग्निकायिक जीव का अस्तित्व १९६६ तीर्थंकरों द्वारा साक्षात्कार ११६८ नियुक्तिकार का मत ११६६ वृत्तिकार का मत श६६ वैज्ञानिक मत १२६६ अग्निकायिक जीव की हिंसा १०६९,७२,७३, ७६,८०,८१ का कारण १२६९,७४,७६ निषेध श८८-८९ न करने का संकल्प १७० अग्नि में अन्य प्राणियों की मृत्यु १८५ अग्नि-सेवन का निषेध १४१-४२ अचेल का तात्पर्य ८।५३ की आराधना ६।५०-५१ चर्या ६।४० शक्यता ६०६६ के गूण ६६० लाभ ६।६५ नग्न का तात्पर्य ६।४७ साधना का स्वीकार ६७४ है उत्तरवाद ६।४९ अचेल मुनि और लज्जा परीषह ६।४५ का तप ६१६४; ८।११४ लाघव ६।६३; ८।११३ की मर्यादा ८।१११-११२ के परीषह ६।४१-४४, ६१-६२ द्वारा चैतसिक चंचलता का परिहार દા૪૬ द्वारा समत्व का सेवन ६।६५, ८।११५ अतीत और अनागत का सम्बन्ध ३१५९ ६०, ४१४६ का गृहवासी जैसा आचरण १११८ तात्पर्य ११९२, २।३९ स्वरूप ११३५ की चिकित्सा पद्धति २।१४७ के खाद्य का परिमाण २।११३ दर्शन में जल स्वयं जीव ११५५ द्वारा अनियतवास ६३९ क्रय-विक्रय का निषेध २११०९ परीषह सहन ॥३७ वस्त्र का विसर्जन ९।१।४,२२ शरीर-विसर्जन ९।३।७ अनशन, देखें-मृत्यु इंगिनीमरण ८।१०६-११०; दादा२-६ प्रायोपगमन १२६-१३० भक्त प्रत्याख्यान दादा७-१८ संलेखना विधि ८।१०५ अनात्म-प्रज्ञ, देखें-आत्मा का अवसाद ६५ गृहवास से मुक्त नहीं ६७ द्वारा बार-बार कष्टों का अनुभव ६।१० विषयों में आसक्त ६।११ साधुत्व दुर्लभ २०७२; ६६ अनारम्भजीवी, देखें-अहिंसा अहिंसाजीवी ५११९ आरम्भ का अर्थ ५२९० द्वारा संधि का साक्षात्कार २२० सूक्ष्मजीवी लोक ५।२६ अनित्य ५२९ अनुपरिवर्तन २०१२६ अन्यत्व ४१३२ अशरण २१७-८, १६-१७, २०-२१, ७६-७७ अशुचितानुप्रेक्षा २०१३० एकत्व ४१३२; ६।३८-३९,८९७-१०० ममत्व विसर्जन २१५ अपरिग्रह और अमूर्छा का तादात्म्य ५।३९ का उपदेश २।१७४ __ मर्मवेत्ता ८।३२ की आराधना के हेतु ८।३४ के मार्ग का स्वरूप २।११९-१२० जनित परीषह-सहन ॥३७ सिद्धि के लिए पराक्रम ५॥३४ सिद्धि के लिए प्रयोग २।१५९ अप्काय, देखें--जलकायिक जीव अप्रमत्त आत्मा ही मित्र ३१६२ और अभय ३७५ का अर्थ १६६८, ५।३७ के कर्म-बन्ध ५१७१ मृत्यु के प्रति जागरूक २०६२ अप्रमाद और अहिंसा ४।११ का मार्ग ५२२१-२२ के आलम्बन सूत्र २।११-१२, ९६-९७ के निर्देश २।९४-९५ में उदीरणा एवं संक्रमण ५२२३ साधना का रहस्य २।१६० अरति और रति के रेचन के उपाय ३३६१ निवारण का फल २।२८ पर विजय पाने का उपाय ६७०-७१ से निवर्तन २०२७-३५ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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