Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 580
________________ आचारांगभाष्यम् अवमौदर्य और आहार ५८० ९।४१। और ब्रह्मचर्य श८० और वस्त्र ८६७,९० के प्रकार ६४० अव्यक्त मुनि, देखें-एकाकी विहार अवस्था में एकल विहार ५२६६ का अर्थ ५।६२ की असमर्थता श६५ प्रशंसा से पराजित २६४ असमनुज्ञ का अर्थ ८१ के प्रति आदर का व्यवहार ८।२८ भिक्ष का निमन्त्रण ८२ से आदान-प्रदान का निषेध का२ आदान प्रदान के निषेध का कारण ८।३-४ अहिंसक अहिंसाजीवी ५११९, देखें-अनारंभजीवी ग्रन्थि-मुक्त ८।३३ व्रती का संकल्प ११९० अहिंसा का आचारण १३५ आधारभूत तत्व ४८ प्रवर्तक वचन ४।२४ मर्मज्ञ २॥१८१ मूल ५१५१ सिद्धांत एवं अन्य दार्शनिक ४१२०, २१ सूत्र ४।४ स्वीकार ४।१४ हृदय २११८० की साधना ८।१७-१८ के आचरण का हेतु ८०२० पांच आदेश ४१ प्रतिपादक-अर्हत् ४१ में आत्मा का स्वरूपगत अद्वैत २१००- अहिंसा धर्म ४९ का ज्ञाता-आर्य ४।२२ प्रतिपादन सबके लिए ४।३ शुद्ध, नित्य, शाश्वत ४।२ अहिंसा व्रत का आजीवन पालन ४१५ की अनुपालना में बाधाएं ४।६-७ अहोविहार, देखें-प्रव्रज्या आचार्य का अनुशासन ६९१ की सरोवर से तुलना श८९ साधना एवं गुण ५।९०-९२ द्वारा प्रशिक्षण ६।७४-७६ आत्मज्ञ का स्वरूप ६७३ ही सर्वज्ञ ४२ आत्म-तुला का अवबोध-हिंसा विरति का हेतु १।१४८; ३३५२ आत्म-दर्शन का परिणाम २।१७४; ३१४८ आत्मदर्शी का स्वरूप एवं परिणाम २:१७४; ३२३५-३७ आत्म-निग्रह के साधन ३३६५ दुःख-मुक्ति का उपाय ३६४ आत्म-प्रज्ञा-धुत-साधना का कारण पृ.२९७ आत्म-रमण की परिज्ञा ॥११७ के लक्षण ३।४६-४७ हेतु ३।४५ आत्म-युद्ध का निर्देश ५१४५ की सामग्री ५४६ के शस्त्र ५१४७ में अप्रवृत्ति का परिणाम ५१४८ आत्मवादी ११५ सम्यक् पर्याय, सत्य का पारगामी ५।१०६ आत्मवान् ३।४ आत्म-समाधि और महावीर ९।४।१४ देखें-महावीर और ध्यान से वंचित ५२९३ आत्मा अनन्यदर्शी और अनन्य-रमण २।१७३ एक आत्माभिमुखता ५२५४ और चैतन्य पृ. ३ ज्ञान का अभेद ५११०५ का अस्तित्व-बोध १११-४ कालिक अस्तित्व १०१-४, पृ. १९, १२५ का परम स्वरूप ५।१२३-१४० का लक्षण ११४, पृ. २३ प्रसाद ३।५५ स्वतंत्र अस्तित्व पृ. १-२ ज्ञाता और ज्ञान दोनों ५५१०४-१०६ धर्म का मूल स्रोत ४१२ पुनर्जन्म-धर्मा है या नहीं १११-४ बन्ध और प्रमोक्ष की कर्ता ५।३६ आत्मानुभूति ५।३७-३८ आत्मानुसंधान ६।२९ आत्मोपलब्धि ३६५६ आध्यात्मिक आलम्बन ३१६२ ज्ञान ३३५४ आतपुरुष का अर्थ १।१३ परिणाम १११४; ५।१८६१८ के प्रकार ४।१४ आश्रव १२६, देखें-क्रिया, प्रवृत्ति और परिश्रव का तात्पर्य ४१२ का अर्थ ४।१२ परिणाम ११८ संसार का हेतु ५॥१० आहार अनास्वाद-वृत्ति एवं परिणाम ८.१०१-१०४ अन्वेषक भिक्षु की विशेषताएं २।११०, ८.३९-४० और इन्द्रिय-शक्ति ८।३६ ब्रह्मचर्य २७९-८० शरीर का उपचय ८.३५ का परिहार ग्लान द्वारा ८७५ प्रयोजन ८।३७ की गवेषणा न करने के हेतु श६३ मात्रा का परिज्ञान २।११३ सन्निधि-सन्निचय २।१०५ सिद्धांत की स्थापना ४।२५-२६ से विमुख जगत् की उपेक्षा ४१२७ Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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