Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 522
________________ ४७८ आचारांगभाष्यम ३६१ ३६२ ३०४ ३०४ ३७९ व्यक्त-अव्यक्त कौन ? २६५ तद्दिट्टीए तम्मोत्तीए""का व्याख्या भेद २६७ कर्म-बन्ध विषयक पर्यालोचन २६९ प्रभूतदर्शी कौन ? .२७० सनिमित्त और अनिमित्त कामोदय की मीमांसा २७२ 'व्याख्यातरत' का अर्थ २८९ चैतन्य का जघन्यतम भाग २९३ आयुर्वेद के अनुसार विभिन्न रोगों की मीमांसा ३०२,३०३ आचारांग चूणि और वृत्ति के अनुसार रोग-मीमांसा ३०३,३०४ उपपात और च्यवन अंधकार अचिकित्सा धुत ३०८,३०९ परीषह-सहन की विधि ३१३ काम का पार पाना असम्भव ३१४ अप्रमादसूत्र ३१४ एकत्वानुभव ३१५,३१६ मुंड के प्रकार ३१७ पलिय की व्याख्या ३१७ सम्यक् चिन्तन के प्रकार आणाए मामगं धम्म उत्तरवाद क्या ? ३२० श्मशान प्रतिमा ३२२ स्वाख्यातधर्म ३२३ समत्त और सम्मत्त की व्याख्या ३२५,३२६ विभिन्न तीर्थंकरों के काल में आयुष्य-परिमाण ३२७ प्रज्ञान का विशेष विवरण ३२७,३२८ अवज्ञा करने का निषेध ३२८ संयम-स्थानों का संधान ३२९ संदीन-असंदीन द्वीप ३२९ दिन में वाचना की प्राचीन परम्परा ३३१ . उपशम के तीन प्रकार ३३१ ज्ञान के अहं से गुरुजनों के निरूपण की अवमानना ३३२ आरम्भार्थी की व्याख्याद्वय ३३६ अनुवदमान लूषक ३३९ दान की प्रशंसा और निषेध ३४३ प्रवचनकार की अर्हताएं :४३ बहिर्लेश्य-अबहिर्लेश्य ३४४ आसक्ति को छोड़ने का अर्थ है आसक्ति को देखना ३४५ 'विप्पिय' की व्याख्या मृत्यु के समय मूढता न हो समनुज्ञ : असमनुज्ञ ३५७,३५८ हिंसा अदत्तादान भी है ३५९ विभिन्न दर्शनों की 'लोक' विषयक मान्यताएं एकांतवाद आशुप्रज्ञ की व्याख्या गुप्ति है भाषासमिति ३६२ धर्म ग्राम में या अरण्य में ? ३६३ 'याम' पद के विभिन्न अर्थ ३६४ प्रव्रज्या-ग्रहण की अवस्था के विषय में विभिन्न मत ३६४,३६५ कर्म-समारम्भ विभिन्न मतों में ३६५ श्मशान आदि पदों की जानकारी ३६७ ८/२४ चूर्णि की भिन्न परम्परा मध्यमवय में प्रव्रज्या क्यों ? ३७० उपपात-च्यवन ३७१ आहार क्यों ? ३७२ सन्निधान का यथार्थ अर्थ ३७२ तीन वस्त्र की प्राचीन परम्परा ३७३ शीत स्पर्श से प्रकंपमान का काव्यशैली में वर्णन ३७३,३७४ वस्त्र धोने, न धोने की प्राचीन परंपरा ३७५ अवमचेलिक कौन ? ३७६ शीत परीषह है स्त्रीपरीषह या कामभोग ३७९ मुनि फांसी लगाकर प्राण त्याग कर दे, कब ? सदृशकल्पिक कौन ? ३८२ भाव-संलेखना और द्रव्य-संलेखना की विधि ३८७ समाहितार्च कौन ? ३८८ संलेखना कब ? तीन प्रकार का उत्थान ३८८ इत्वरिक अनशन कब? कैसे? ३८९,४००,४०१ वसुमान् कौन ? ३९५ समाधि-मरण-अनशन के तीन प्रकार ३९५,३९६ आनुपूर्वी अनशन का स्वरूप ३९६ अनशन में आहार के समीप जाने का निषेध ३९६ अनशन काल में मुनि का कर्तव्य ३९७ अध्यात्म की एषणा का पहला चरण ३९७ उपशम की अवगति होने पर क्या करे ? ३९७ अनशन काल में प्राणी शरीर का भक्षण करते हों, तो ___ मुनि क्या सोचे? ३९९ प्रायोपगमन या पादपोपगमन ? पादपोपगमन की श्रेष्ठता भावाभिव्यञ्जना से) जब तक प्राण तब तक परीषह और उपसर्ग आशंसा के प्रकार देव द्वारा शाश्वत काम-भोग का प्रलोभन अनुमिता शरीर का अनुवासन उपसर्ग का हेतु ४१२ ३८८ ४०२ or . ० ० 200 ० ३४५ ४१२ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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