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परिशिष्ट ५
टिप्पणों में उल्लिखित विशेष विवरण
१८५
१९३
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२२६
१२१ १२३
२२८
२४२
सहसम्मुइ-स्वस्मृति सोऽहं-कालिक अस्तित्व का सूचक दिशा : भेद-प्रभेद महापथ जल के तीन प्रकार मूर्छा : भेद-प्रभेद वनस्पति की ज्ञानात्मकता प्रवृत्ति का मुख्य स्रोत-अन्त:करण इन्द्रिय-परिज्ञान की परिहानि के विषय में डा० कार्लसन
का मत वय के आधार पर शक्ति-हानि का क्रम परिग्रह के संबंध में सुख-दुःख भोजन : भोग भी, त्याग भी दोषपूर्ण भोजन से चारित्र की अविपक्वता पुनरुक्त कब ? कैसे ? धर्मोपकरण के प्रति भी अनासक्त
१२६ शरीर की ब्रह्मांड से तुलना काम-मुक्ति के आलंबन त्राटक तथा ध्यान की तीन पद्धतियां
१२९ सन्धि-दर्शन-विभिन्न मत मूढ की मनोदशा
१३४ अर्थलोलुप और मृत्यु चिकित्सा : एक अनुचिंतन -
१३७ एक जीव की हिंसा : सब जीवों की हिंसा
१३९ एक अव्रत का आचरण : सभी अव्रतों का आचरण १३९ कर्म नहीं तो कर्म-बंध भी नहीं।
१४१ अरति और रति को सहने का विवेक
१४३ रूक्ष आहार बलप्राप्ति का साधन : महाभारत के अनुसार १४५ व्यावहारिक सम्यग्दर्शन अप्रमाद के सूत्र
१४९ क्षेत्रज्ञ: गीता के संदर्भ में उपधि पारिणामिक भाव
१७२ आतंकदर्शनपूर्वक पाप-वर्जन : बौद्ध दर्शन के आधार पर १७४ निष्कर्म आत्मा
१२८ १२९
उपेक्षा का विशेष अर्थ
१८३ F३५९-६० की विशेष व्याख्या
१८६,१८७ यथार्थ ज्ञान है निग्रह स्वपर्याय परपर्याय शस्त्र अशस्त्र कुमारिलभट्ट का प्रश्न
२०७ क्षेत्रज्ञ कौन ?
२०८ ज्ञाति का अर्थ
२११ दृष्ट, श्रुत, मत और विज्ञान के अर्थ में भिन्नता २११,२१२ 'णिह" की मीमांसा
२२२ एकत्व भावना
२२२ कर्म-शरीर का प्रकंपन कैसे ?
२२३ ४१३४ की प्रकारांतर से व्याख्या
२२६ तीसरी भूमिका है शरीर-त्याग की
२२६ 'शारद' शब्द की मीमांसा 'जस्स नत्थि पुरा पच्छा' निष्कर्म-दर्शन
२३० संशय : सत्य प्राप्ति का हेतु 'रूप' शब्द की मीमांसा
२४३,२६१ 'विद्या' शब्द की मीमांसा 'संधि' विषयक आयुर्वेद की मान्यता
२४७,२४० मर्म-स्थान
२४८ अन्तर्मुखता का उपाय-शरीर-दर्शन
२४९ 'अप्रमत्त' के विभिन्न अर्थ
२५५ 'समिया' के तीन अर्थ
२५६ 'सोच्चा' और 'णिसामिया' में भेद
२५६ उठना-गिरना-चार विकल्प 'यतमान' की चूर्णिगत प्राचीन परम्परा
२५९ पातंजल योगदर्शन के अनुसार 'यतमान' वैराग्य की एक अवस्था
२५९ साधु-जीवन की स्थिरता के सात सूत्र आत्मयुद्ध गर्भ-दुःख 'एकात्म-मुख' की मीमांसा ज्ञान और आचार का अविनाभाव
२६४ 'दूइज्जमाण' की अर्थ-मीमांसा
२६५
२४५
१३१
१३५
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१४९
१६५
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