Book Title: Acharangabhasyam
Author(s): Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 512
________________ परिशिष्ट ३ विशेष शब्दार्थ ४॥२१ २०११ अंजु-ऋजु, कल्याणकारी ० अहिंसक ५।१०२ ० मध्यस्थ ९।१७ अंत-स्वभाव, निश्चय ३१२३ अंतर-अन्तरात्मा विवर, शून्य प्रदेश, घर का गुप्त प्रदेश ९.१११२ अंतिय -मरणासन्नकाल ८।८।३ अकम्म-ध्यानस्थ, ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण कर्मों से मुक्त २१३७ ० कर्ममुक्त, शुद्ध आत्मा ३११८ अकस्मात्- अहेतुक ८७ अकाम--अलुब्ध, इच्छाकाम से मुक्त १४४ अकुक्कुय -अकुतूहल, अचपल ९।४।४ अकुतोभय---अभय ११३८ अखेयण्ण-अनात्मज्ञ २०७२ अग्ग -राग-द्वेष के हेतुभूत कर्म अथवा मोह के अतिरिक्त सभी कर्म ३३३४ अचिर-समुचित स्थान ८1८।२० अचेयण -क्रियारहित ८।८।१५ अज्ज-आर्य ३।२६ अज्झत्थ-कषायों का उपशमन १११४७ अज्झोववण्ण-रसलोलुपता, सुखलोलुपता ६७९ अझंझ-कलहमुक्त ५१४४ 'अट्ट-पीडित १११३ अट्ठम-तीन दिन की तपस्या, तेला ९।४७ अणइवत्तिय-ज्ञान आदि का अनतिक्रमण, अहिंसा ६।१०२ अणण्ण-आत्मा, चैतन्य ३।४५ अणण्णदंसि-निष्कामदर्शी, निर्मल चैतन्यदर्शी अणण्णपरम -आत्मोपलब्धि, संयम, समता ३१५६ अणण्णाराम - चैतन्य में रमण करने वाला २।१७३ अणाणा-अनात्मभाव २।२९ ० तीर्थंकर का अनुपदेश, अपनी बुद्धि से किया हुआ आचरण ५।१०७ अणातीत-परिस्थिति से अप्रभावित ८.१०७ अणादियमाण-अनादृत २।१७५ अणारद्ध-अनाचीर्ण २।१८३ अणारिय-हिंसाधर्मी अणिदाण-बन्धन-मुक्त ४१३८ अणिह–अप्रताडित ४।३२ • अस्नेह ५२४ • राग-द्वेष से अपराजित ६।१०६ अणुग्घायण-अहिंसा २।१८१ ० (अण-कर्म, उग्घायण-उत्पादन, ___ अणुग्घायण-कर्म का उत्पादन--चूर्णि) अणुधम्मिय-धर्मानुगामिता ९।१२२ अणुवसु-सराग-संयम ६।३० अणुवीइ-विवेक या चिन्तनपूर्वक ६।१०३ अणुवेहमाण-अमध्यस्थ भाव रखने वाला ५२९७ अणेलिस-अन्तःप्रज्ञागम्य ६।२ अणोमदंसि-उत्तमदर्शी, आत्मदर्शी, उत्तम सम्यग्दृष्टि ३।४८ अतिवेल-मर्यादा का अतिक्रमण दादा अदिस्समाण-प्रवृत्ति न करता हुआ २।१०९ अदु (दे) अथ ९।११५ अन्नगिलाय - बासी भोजन ९।४।६ अपडिण्ण-अप्रतिज्ञ-केवल अपने लिए ही नहीं किन्तु ___ सामुदायिक भिक्षा लाने वाला २।११० ० प्रतिकार के संकल्प से रहित ९।२।११ अपरिनिव्वाण-अशांति ४१२६ अपलीयमाण-अनासक्त ६॥३६ अपिइत्थ-बिना पानी पीए ९।४।५ अप्पतिट्ठाण-निरालंबन ५।१२६ अहिलेस्स-संयम में अथवा आत्मा में रमण करने वाला ६।१०६ अभिजुंजिय-बलात् सेवा में नियोजित कर २०६५ अभिणिव्वट्ट-अंग-उपांग का निवर्तन ६।२५ अभिसंजात-पेशी तक की अवस्था ६२५ अभिसंभूत-कलल तक की अवस्था ६।२५ अभिसमेच्च-प्राप्त कर १/३१७ अभिसेय-शुक्र और शोणित का निषेक ६२५ अभोच्चा-पानी पीए बिना ९।१११ अमरायइ-अमर की भांति आचरण करता है २।१३७ अमुणि-अज्ञानी ३।१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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