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आचारांगभाष्यम्
१२६. ओए अप्पतिढाणस्स खेयन्ने।
सं०-ओजः अप्रतिष्ठानः क्षेत्रज्ञः ।
वह अकेला, सर्वथा अनालंबन और ज्ञाता है। १२७. से ण दोहे, ण हस्से, ण वट्टे, ण तंसे, ण चउरंसे, ण परिमंडले।
सं०-स न दीर्घः, न ह्रस्वः, न वृत्तः, न व्यस्रः, न चतुरस्रः, न परिमण्डलः । वह आत्मा न दीर्घ है, न ह्रस्व है, न वृत्त है, न त्रिकोण है, न चतुष्कोण है और न परिमंडल है।
१२८. ण किण्हे, ण णीले, ण लोहिए, ण हालिद्दे, ण सुविकल्ले । - सं०---न कृष्णः, न नीलः, न लोहितः, न हारिद्रः, न शुक्लः ।
वह न कृष्ण है, न नील है, न लाल है, न पीत है और न शुक्ल है। १२६. ण सुब्भिगंधे, ण दुरभिगंधे ।
सं० --न सुरभिगन्धः, न दुरभिगन्धः ।
वह न सुगन्ध है और न दुर्गन्ध है। १३०. ण तिते, ण कडुए, ण कसाए, ण अंबिले, ण महुरे।
सं०-न तिक्तः, न कटुकः, न कषायः, नाम्लः, न मधुरः ।
वह न तिक्त है, न कटु है, न कषाय है, न अम्ल है और न मधुर है । १३१. ण कक्ख डं, ण मउए, ण गरुए, ण लहुए, ण सोए, ण उण्हे, ण गिद्धे, ण लुक्खे ।
सं० - न कर्कशः, न मृदुकः, न गुरुकः, न लघुकः, न शीतः, न उष्णः, न स्निग्धः, न रूक्षः । वह न कर्कश है, न मृदु है, न गुरु है, न लघु है, न शीत है, न उष्ण है, न स्निग्ध है और न रूक्ष है।
१३२. ण काऊ। सं०--न कायवान् ।
वह शरीरवान नहीं है। १३३. ण रुहे। सं० न रुहः ।
वह जन्मधर्मा नहीं है। १३४. ण संगे।
सं०--न संगः ।
वह लेपयुक्त नहीं है। १३५. ण इत्थी, ण पुरिसे, ण अण्णहा।
सं०-न स्त्री, न पुरुषः, न अन्यथा । वह न स्त्री है, न पुरुष है और न नपुंसक है ।
१.वृत्तिकृता एतत्पदं षष्ठ्यन्तं व्याख्यातं, तेन अर्थस्य जटिलता जाता। प्राकृतल्या एतद विभक्तिपरिवर्तनपूर्वकं प्रथमान्तं व्याख्यायते, तदा अर्थसारल्यं स्यात् ।
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