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अ० ६. धुत, उ० २. सूत्र ३०-३४
भाष्यम् ३२-अनुपूर्वम्--क्रमः। ये परीषहं क्रमेण न अनुपूर्व का अर्थ है – क्रम । जो मुनि परीषह को सहने का सहन्ते, तेषां स दुस्सहो भवति । यथा-केनचित् मनोज्ञं क्रमशः अभ्यास नहीं करते, उनके लिए वह परीषह दुःसह हो जाता है। रूपं दृष्ट, तदानीमेव तेन अव्यापारः कार्य: न पुनस्तद् जैसे---किसी ने मनोज्ञ रूप देखा । तत्काल ही वह अपनी दृष्टि को उससे द्रष्टुं प्रयत्नः कार्यः। एषोनुकलपरीषहसहनस्य प्रथम- हटा ले, पुनः उसे देखने का प्रयत्न न करे । यह अनुकूल परीषह को सहने श्चरणः । तस्मिन रूपे प्रतिगते तस्य अनुस्मृतिर्न कार्या। का पहला चरण है। उस रूप के वहां से निवृत्त हो जाने पर उसकी एष द्वितीयश्चरणः। अनेन क्रमेण स परीषहः सुसहो स्मृति न करे । यह दूसरा चरण है । इस क्रम से उस परीषह को सहना भवति। ये एवं नाभ्यस्यन्ति, रूपं दृष्ट्वा मूर्च्छन्ति, सरल हो जाता है। जो इस प्रकार अभ्यास नहीं करते, रूप को देख तत्प्रति अभिसर्पन्ति, तस्मिन् प्रतिगते तदेव अनु- कर उसमें मूच्छित हो जाते हैं, उसके प्रति अभिमुख हो जाते हैं, उसके स्मरन्ति, तेषां स परीषहः दुस्सहो भवति। एवमन्येषा- निवृत्त हो जाने पर उसी की अनुस्मृति करते रहते हैं, उनके लिए रूप मिन्द्रियाणां विषयजनिताः परीषहाः बोद्धव्याः। एवं का वह परीषह दुस्सह हो जाता है। इसी प्रकार अन्यान्य इन्द्रियों के अनिष्ट विषयजनितेष्वपि परीषहेषु वाच्यम् ।' विषय से उत्पन्न होने वाले परीषहों के विषय में जानना चाहिए । इस
प्रकार अनिष्ट विषय जनित परीषहों को सहने का भी यही क्रम है।
३३. कामे ममायमाणस्स इयाणि वा मुहुत्ते वा अपरिमाणाए भेदे । सं०-कामान् ममायमानस्य इदानी वा मुहूर्तेन वा अपरिमाणाय भेदः । वह काम-मूर्छा से मुनि-धर्म को छोडता है । उसकी उसी क्षण, मुहूर्त भर में अथवा किसी भी समय किसी मानदंड के बिना मृत्यु हो सकती है।
भाष्यम् ३३-यः कामान् प्रति मूच्छितो भवति, जो कामों में मूच्छित होता है, उनमें ममत्व करता है, तेषु ममत्वं करोति, तेषामर्थं मुनिपर्यायं परित्यजति, उन के लिए मुनि-धर्म को छोड़ देता है, उसके विषय में सूत्रकार तस्य विषये सूत्रकार: प्रतिपादयति-येन कामासेवनार्थं कहते हैं जो मुनि कामों के आसेवन के लिए मुनि-धर्म को छोडकर अवधावनं कृतं तस्य इदानीं-अस्मिन्नेव क्षणे वा, चला जाता है, उसका उसी क्षण में अथवा जिस किसी क्षण में, वय मुहर्ते यस्मिन् कस्मिश्चित् क्षणे वा वयःप्रभृतीनां आदि के मानदंड के बिना, भेद हो सकता है। भेव का अर्थ है --प्राण परिमाणं विना भेदो भवति । भेदः-प्राणशरीरयोः और शरीर का वियोजन-मृत्यु । वियोजनम् । ३४. एवं से अंतराइएहि कामेहिं आकेवलिएहि अवितिण्णा चेए। सं० ---एवं स आन्तरायिकैः कामैः आकेवलिकैः अवितीर्णाः चैते। इस प्रकार वह विघ्न और द्वंद्वयुक्त इन कामों का पार नहीं पा सकता । भाष्यम् ३४-कामाः सन्ति आन्तरायिकाः सविघ्ना
काम बाधा उपस्थित करने वाले और विघ्नबहुल होते हैं। वे दति यावत. आकेवलिका:-असम्पूर्णाः सद्वन्द्वा इति असंपूर्ण अर्थात् द्वन्द्व युक्त होते हैं। इसलिए उनका पार नहीं पाया जा १. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ २१०: परीसहा ते य एवं
होने पर अस्मृति करने वाला अनुकूल परीवहों को अणुपुब्वेणं ण अहियासिज्जति, सदं सुणेत्ता तत्य
सहन कर सकता है। मुच्छति, तं वा प्रति अभिसर्पति, य से अव्वावारं
प्रतिकूल परीषहों के सहन और असहन का भी यही करेइ, तदुवरमे य तदेव अणुस्सरति, एवं दुरधियासा भवंति, जाव फासा, एवं अणिठेसु दोसं करेति ।
२. आचारांग चूणि, पृष्ठ २११ : एतेणं तस्स परिमाणं ण (ख) परीषह दो प्रकार के होते हैं-अनुकूल और
विज्जति, भेदो जीवसरीरप्पा, अहवा अपरिमाणाए प्रतिकूल । मनोज्ञ शब्द, रूप आदि इन्द्रिय-विषय
उवक्कमेणं अणुवक्कमेणं वा ण णज्जति कहं गमणमिति, अनुकल परीषह हैं। उनके प्राप्त होने पर व्यापार
उवक्कमेवि सति ण सो उवक्कमविसेसो णज्जति जेणं और उनके निवृत्त होने पर उनकी स्मृति करने गंतवमिति । वाला अनुकूल परीषहों को सहन नहीं कर सकता। ३. वही, पृष्ठ २११: भेदो जीवसरीरप्पा। उनके प्राप्त होने पर अव्यापार और उनके निवृत्त
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