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आचारांगभाष्यम
२. आवेसण-सभा-पवासु, पणियसालासु एगदा वासो । अदुवा पलियट्ठाणेसु, पलालपुंजेसु एगदा वासो । सं०-आवेशन-सभा-प्रपासु, पण्यशालासु एकदा वासः । अथवा 'पलिय" स्थानेषु, पलालपुजेषु एकदा वासः । भगवान् कभी शिल्प-शालाओं (कुम्भकार-शाला, लोहकार-शाला आदि) में रहते थे, कभी सभाओं, प्याउओं, पण्य-शालाओं (दुकानों) में रहते थे । वे कभी कारखानों में और कभी पलाल-मण्डपों में रहते थे।
भाष्यम् २ --आवेशनम्-शिल्पशाला। सभा-ग्राम- गाथागत शब्दों के अर्थसंसत् ।' प्रपा-पानीयशाला। पण्यशाला --आपणः । ० आवेशन-शिल्पशाला। सकुड्यं गृहम्,' कुड्यरहिता शाला । वासः-ऋतुबद्धे काले ० सभा- गांव की संसद् । रात्र्यां वसनं वर्षासु च । पलियं-कर्म, कर्मान्त:- ० प्रपा- प्याऊ । स्थानेषु । पलालपुञ्जेषु-पलालमण्डपेषु ।'
०पण्यशाला-दुकान । ० शाला-भीत सहित आवास को घर और भींत रहित को
शाला कहा जाता है। • वास-ऋतुबद्धकाल में रात्री में रहना तथा वर्षाऋतु में
रहना। • पलियट्ठाण-कर्मान्तस्थान-कारखाना।
• पलालपुञ्ज–पलालमंडप । ३. आगंतारे आरामागारे, गामे णगरेवि एगदा वासो। सुसाणे सुण्णगारे वा, रुक्खमूले वि एगदा वासो॥
सं०-आगन्तारे आरामागारे, ग्रामे नगरेऽपि एकदा वासः । श्मशाने शून्यागारे वा, रूक्षमूलेऽपि एकदा वासः । भगवान् कभी यात्री-गृहों और कभी आरामगृहों में रहते थे। कभी गांव में रहते थे और कभी नगर में, कभी श्मशान में और कभी शून्यगृह में रहते थे तथा कभी-कभी वृक्ष के नीचे भी रहते थे।
भाष्यम् ३–आगन्तारं-यात्रिगृहमिति । आरामागारं- आगन्तार का अर्थ है- आने वालों का घर अर्थात् यात्रीगृह । आरामगृहम् ।" कदाचिद् ग्रामे कदाचिन्नगरेऽपि भगवतो आरामागार अर्थात् आरामगृह । भगवान् कभी गांव में और कभी
१. देशीयशब्दः। २. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ ३११: 'आगंतुं विसति
जहियं आवेसणं' जं भणियं गिहं लोगप्पसिद्ध,
जहा कुंभारावेसणं लोहारावेसणं एवमादि । (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र २७८ : आवेशनं-शून्यगृहम् । ३. (क) आचारांग चूणि पृष्ठ ३११-३१२ : सभा नाम नगरा
दीणं मझे देसे कोरंति, गामे पउरसमागमा य
भवंति, सेणिमादीणं तु पत्तेयं सभा भवंति। (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र २७८ : सभा नाम ग्रामनगरा
दीनां तद्वासिलोकास्थायिकार्थमागन्तुकशयनार्थं च
कुड्याधाकृतिः क्रियते। ४. आचारांग चूणि, पृष्ठ ३१२ : जत्थ रुद्दादिपडिमाओ ठविज्जंति, पिविस्संति पेहियादि सा पवा, तंजहा - उदगप्पवा गुलउदकप्पवा खंडप्पवा सक्करप्पवा
एवमादि । ५. वही, पृष्ठ ३१२ : पणियगिहं आवणो पणियसालत्ति । ६. वही, पृष्ठ ३१२ : पढंति सालघराणं विसेसो, सकुडं घरं
कडुरहिता साला, जंवा लोगसिद्ध णाम, जहा सकुड्डावि
हत्थिसाला बुच्चति । ७. वही, पृष्ठ ३१२ : वास इति राईगहिता उडुबद्ध,
वासासु। ८. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ ३१२ : पलियं नाम कम्म,
यदुक्तं भवति-कम्मतट्ठाणेसु, दम्भकम्मंतादिसु, अहवा पलिगाति ठाणं, तंजहा-गोसाला, गोबद्धो वा
करीसरहितो, ण अज्झावगासं। (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र २७९ : पलियन्ति कर्म तस्य
स्थानं कर्मस्थानं-अयस्कारवर्द्धकिकुड्यादिकं । ९. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ ३१२ : पलियं तु पलालं,
पुंजो संघातो, पलालमंडवस्स हेट्ठासु सिरत्ताणे
पलालपुंजेसु पविसति। (ख) आचारांग वृत्ति, पत्र २७९ : पलालपुजेषु मञ्चो
परि व्यवस्थितेष्वधो, न पुनस्तेष्वेव, शुषिरत्वादिति । १०. आचारांग चूणि पृष्ठ ३१२ : आगंतु जत्य आगारा
चिट्ठति तं आगंतारं। ११. वही, पृष्ठ ३१२ : आरामे आगारं आरामागारं ।
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