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अ० ८. विमोक्ष, उ० ४. सूत्र ४३-४८ ४५. अहापरिग्गहियाई वत्याइं धारेज्जा।
सं०-यथापरिगृहीतानि वस्त्राणि धारयेत् । वह यथा-परिगृहीत वस्त्रों को धारण करे-न छोटा-बड़ा करे और न संवारे ।
भाष्यम् ४५ -आचारचलायामपि किञ्चित् शब्द- 'आचारचूला' में भी यह सूत्र कुछ शब्दभेद के साथ उपलब्ध भेदेन एतत् सूत्रं उपलभ्यते ।' 'अहापरिग्गहियाई वत्थाई है। 'यथा-परिगृहीत वस्त्र को धारण करे'-- इस सूत्र का तात्पर्य 'न धारेज्जा' एतस्य सूत्रस्य तात्पर्य ‘णो धोएज्जा णो रएज्जा' धोए न रंगे'-इस वाक्यांश में स्पष्ट होता है। विभूषा के लिए वस्त्र इति वाक्यांशे स्पष्टं भवति । विभूषार्थ धावनं नास्ति धोना अनुज्ञात नहीं है, इसलिए यथा-परिगृहीत वस्त्र धारण करे, यह अनुज्ञातम्, तेन यथापरिगहीतं वस्त्र धारयेद् इति निर्देश दिया गया है। निर्देशः।
४६. णो धोएज्जा, णो रएज्जा, णो धोय-रत्ताई वत्थाई धारेज्जा।
सं० नो धावेत, मो रजेत्, नो धौतरक्तानि वस्त्राणि धारयेत । वह उन वस्त्रों को न धोए, न रंगे और न धोए-रंगे हए वस्त्रों को धारण करे ।
भाष्यम् ४६ स जिनकल्पिकादिभिक्षुः तानि वह जिनकल्प आदि की विशिष्ट साधना करने वाला भिक्षु वस्त्राणि नो धावेत् । न च कषायधात्वादिभिः रज्येत् । उन वस्त्रों को न धोए । न उन वस्त्रों को कषाय-पीले अथवा लाल धौतरक्तम्, यथा च चूणिः ।
रंग से रगे। धोए-रंगे वस्त्रों के विषय में चूर्णिकार कहते हैं-धौतरक्त धोतरतं णाम जं धोवितुं पुणो रयति, अन्नं अरुच्चमाणगं का अर्थ है -धोकर पुन: रंगना, अनाकर्षक रंग को धोकर दूसरे रंग धोइउ अण्णेण रयंति, जहा अहोयरत्तं तहा अपरिकम्मियंपि।' से रंगना । जैसे अधौतरक्त है वैसे ही है अपरिमित-जिसका परिकर्म
नहीं किया गया है।
४७. अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ।
सं०-अपरिकुञ्चन् ग्रामान्तरेषु । वह ग्रामान्तर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाकर नहीं चलता।
भाष्यम् ४७ --स भिक्षुः उज्झितधर्माणि एव वस्त्राणि वह भिक्ष परिष्ठापन योग्य वस्त्रों को ही धारण करता है, धारयति, तेनासौ ग्रामान्तरगमने वस्त्राणि अपरिकुंचन्- इसलिए वह ग्रामांतर जाता हुआ वस्त्रों को छिपाए बिना जा सकता अगोपयन् गन्तुमर्हति, न तस्य चौरादिभयं जायते। है । उसको चौर आदि का भय नहीं होता।
४८. ओमचेलिए।
सं०-अवमचेलिकः । वह अल्प (अतिसाधारण) वस्त्र धारण करता है।
भाष्यम् ४८ --स भिक्षुः गणनेन प्रमाणेन मूल्येन च
वह भिक्षु गणना, प्रमाण और मूल्य की दृष्टि से अवमचेलिक
१. आयारचूला ४१ : से भिक्खू वा भिक्खुणी वा अहेसणिज्जाई वत्थाई धारेज्जा, अहापरिग्गहियाई वत्थाई धारेज्जा णो धोएज्जा, णो रएज्जा, धोयरत्ताई वत्थाई धारेज्जा । अपलिउंचमाणे गामंतरेसु ओमचेलिए। २. अत्र वृत्तौ गच्छबासिनां सामाचार्या उल्लेखः कृतोस्ति
गच्छवासिनो ह्यप्राप्तवर्षादौ ग्लानावस्थायां वा प्रासुकोबकेन यतनया धावनमनुज्ञातं, न तु जिनकल्पिकस्येति ।' (आचारांग वृत्ति, पत्र २५१)।।
चूणों एष उल्लेखो नैव लभ्यते। ३. आचारांग चूणि, पृष्ठ २७३ ।
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