________________
अ० २. लोकविचय, उ० १. सूत्र ३-५ परिहायमाहिं। सं०-अल्पं च खलु आयुः इहैकेषां मानवानां, तद् यथा-श्रोत्रपरिज्ञानैः परिहीयमानः, चक्षुष्परिज्ञानैः परिहीयमानः, घ्राणपरिज्ञानः परिहीयमानः, रसपरिज्ञानैः परिहीयमानः, स्पर्शपरिज्ञानैः परिहीयमानः । इस संसार में कुछ मनुष्यों का आयुष्य अल्प होता है, जैसे-श्रोत्र-परिज्ञान के परिहीन हो जाने पर, चक्षु-परिज्ञान के परिहीन हो जाने पर, घ्राण-परिज्ञान के परिहीन हो जाने पर, रस-परिज्ञान के परिहीन हो जाने पर, स्पर्श-परिज्ञान के परिहीन हो जाने पर (वे अल्प आयु में ही मर जाते हैं)।
भाष्यम् ४–केचिन्मनुष्या दीर्घायुषो भवन्ति, कुछ मनुष्य दीर्घायु होते हैं, कुछ अल्पायु । जब हम अल्प केचिच्चाल्पायुषः । यदा वयं अल्पायुष्कदशां विचारयामः आयुष्य की स्थिति पर विचार करते हैं तब परिग्रह-प्रधान प्रयत्नों की तदा परिग्रहप्रधानानां प्रयत्नानां व्यर्थतायाः अनुभवो व्यर्थता का अनुभव होता है । प्रस्तुत सूत्र अल्पायुष्य का विचयसूत्र है । जायते । अल्पायुष्कविचयसूत्रमिदम् । श्रोत्रादीन्द्रियपञ्च- श्रोत्र आदि पांच इन्द्रियों को ग्रहण (ज्ञान) शक्ति जब क्षीण होनी शुरू कस्य परिज्ञानं यदा हीयमानं भवति तदा अकालेऽपि हो जाती है तब अकाल में भी आयुष्य क्षीण हो जाता है। आयुषः क्षयो जायते।।
वैज्ञानिका' मन्यन्ते--मस्तिष्कीयकोशिकानां क्षये वैज्ञानिक मानते हैं कि मस्तिष्कीय कोशिकाओं के क्षीण होने जाते मनुष्योम्रियते। इन्द्रियाणां केन्द्रबिन्दवः सन्ति पर मनुष्य मरता है । इन्द्रियों के केन्द्र-बिन्दु पृष्ठ-मस्तिष्क में होते हैं । पृष्ठमस्तिष्के । सूत्रकारस्य तात्पर्यमिदं भवेत् -- इन्द्रियाणां सूत्रकार का तात्पर्य यह होना चाहिए कि इन्द्रियों का प्रज्ञान उनके प्रज्ञानं तेषां केन्द्रबिन्दूनां हीनतायां सत्यां हीनं जायते । केन्द्र-बिंदुओं के क्षीण होने पर क्षीण होता है। उस स्थिति में असमय तस्यामवस्थायां असमयेऽपि मृत्युर्घटते। श्रोत्रादीना- में भी मृत्यु घटित हो जाती है। श्रोत्र आदि इन्द्रियों में लाखों स्ना यु मिन्द्रियाणां लक्षशः स्नायवः सन्ति । तेषामभिघातेन होते हैं । उनके अभिघात से तत्काल मृत्यु हो सकती है। सद्यो मृत्युः सम्भाव्यते। ५. अभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए। सं०-अभिक्रान्तं च खलु वयः संप्रेक्ष्य ।
अवस्था जरा की ओर जा रही है यह देखकर पुरुष चिन्ताग्रस्त हो जाता है। १. अस्मिन् विषये-'लेबोरेटरी आफ रिएनीमेटोलोजी' संस्थाना
वर्ष की उम्र से घटने लगती है और घ्राण-शक्ति साठ वर्ष ध्यक्षस्य डा० ब्लादिमीरनेगोवस्कीमहोदयस्य सिद्धान्तः की उम्र से। श्रवण-शक्ति का क्षय तो बीस वर्ष की उम्र द्रष्टव्यः। (धर्मयुग, १३ दिसम्बर, १९८१ पृष्ठ १५)
से ही प्रारंभ हो जाता है। मनमोहनसरलमहोदयस्य लेखः।
बीस वर्ष की उम्र से ही पेट के पाचक रस कम होने २. प्रस्तुतसूत्रेण तुलनीयम् -डा० कार्लसन का कथन है कि
लगते हैं और साठ वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते उनका यद्यपि गणित से मानव की आयु एक सौ पचास वर्ष आती उत्पादन आधा हो जाता है। पचास वर्ष की उम्र में है, तथापि चिकित्सा विशेषज्ञों को मोटे तौर पर सौ वर्ष
'पेपसिन' और 'ट्रिपसिन' का उत्पादन बहत ही घट जाता की आयु तो स्वीकार कर ही लेनी चाहिए।
है। ये चीजें पाचन-शक्ति को ठीक रखने के लिए ___ मानव जीवन के इस काल में उसकी विभिन्न शक्तियां
अत्यावश्यक है। वस्तुतः इन्हीं को कमी से हाजमें की भी एक क्रम से क्षीण होती हैं। सबसे पहला लक्षण आंख
तकलीफें उम्र के साथ बढ़ती हैं। पर प्रकट होता है। आंख के लेंस के लचीलेपन की कमी
मानव मस्तिष्क की ग्रहणशक्ति बाईस वर्ष की उम्र में दसवें वर्ष में ही प्रारंभ हो जाती है और साठ वर्ष की
सबसे अधिक होती है और उसके बाद वह घटती है, आयु तक पहुंचते-पहुंचते वह समाप्त हो जाती है। आंख
पर अत्यन्त अल्प गति से। चालीस वर्ष की उम्र के बाद की शक्ति के क्षय के दूसरे लक्षण हैं--दृष्टि के प्रसार में
घटने का क्रम कुछ बढ़ जाता है। अस्सी वर्ष की उम्र तक कमी, किसी चीज का साफ साफ नजर न आना तथा
पहुंचने पर वह फिर उतनी रह जाती है जितनी की बारह हल्के प्रकाश में दिखलायी न पड़ना। ये लक्षण चालीस वर्ष की उम्र में थी। ('जवानी के बिना यह देह शव है' वर्ष की उम्र में प्रारंभ होते हैं। इसी प्रकार मानव को
-रतनलाल जोशी, कादम्बिनी सितंबर १९८५) दूसरी शक्तियां भी कम होती है। स्वाद की तेजी पचास
Jain Education international
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org