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आचारांगभाष्यम्
शैलेश्यवस्थायां केवलं परिस्रवो भवति न पुनर्वन्धी अवस्था में केवल निर्जरण होता है, पुनः बंध नहीं होता। भवति ।
एतानि पदानि संबुध्यमान: पृथक् प्रवेदितं आस्रवलोकं परिस्रवलोकं च आज्ञया अतीन्द्रियज्ञानि - निर्दिष्टमार्गेण अभिसमेत्य कि कुर्यादिति अग्रिमसूत्रे प्रदर्शयिष्यते ।
एते भङ्गाः परिमाणतः क्रियाविशेषतः उपचयापचयतः व्याख्येयाः ।
परिमाणतः - असंबुद्धस्य यावन्तः आस्रवहेतवः संबुद्धस्य तावन्तः निर्जराहेतवः ।
क्रियाविशेषतः असंयतस्य या स्थानादिक्रिया आस्रवाय भवति संयतस्य सा चैव निर्जराय भवति ।
उपचयापचयतः - 'ये आस्रवास्ते साम्परायिकक्रियामपेक्ष्य असी भङ्गः ।
ये वास्ते अपरिस्रवाः - असौ भङ्गः अवस्तु । ये अनावास्ते परिस्रवाः असी भङ्गः शैलेश्यवस्थामपेक्ष्य |
अपरिस्रवाः - असौ भङ्गः
प्रस्तुतसूत्रे बन्धनिर्जरयो रहस्यानि संकेतितानि । कर्मवादस्य रहस्यानि विज्ञाय पुरुष हिंसातो विरतो भवति अथवा अहिंसां प्रपद्यते अथवा आत्मविकासस्य प्रक्रियां परिजानातीति हृदयम् ।
ये अनाखवास्ते सिद्धानपश्य ।
परिस्रवाः '
भाष्यम् १२ – जानी पुरुष : बन्धनिर्जरयो रहस्य विज्ञाय इह मानवानां तदाख्याति ये सन्ति संसार प्रतिपन्नाः - आरम्भस्थिताः, ये च सन्ति संबुध्यमानाः - दुःखादुद्वेजका सुखस्य एपका धर्मश्रवणगवेषकाश्च ये च सन्ति विज्ञानप्राप्ताः- उदितविवेकाः ।
१४. अट्टा वि संता अनुआ पमत्ता
इन सारे विकल्पों को समझने वाला पुरुष विस्तार से प्रतिपादित आस्रवलोक और परिस्रवलोक को आज्ञा - अतीन्द्रियज्ञानी द्वारा निर्दिष्ट मार्ग से जान कर क्या करे, इसका निर्देश अग्रिम सूत्र में किया गया है ।
१. आचारांग चूणि, पृष्ठ १३८ : जं भणितं मतिया असंजमट्ठाणाई तत्तियाइं संजमट्ठाणाई, भणियं च
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उपर्युक्त विकल्पों की व्याख्या तीन तथ्यों परिमाण, कियाविशेष तथा उपचयापचय के आधार पर करनी चाहिए
१. परिमाण के आधार पर के हेतु है. सम्बुद्ध पुरुष के
सं० - आर्ताः अपि सन्तः अथवा प्रमत्ताः ।
आतं मनुष्य भी धर्म को स्वीकार करते हैं और प्रमत्त मनुष्य भी ।
असंबुद्ध पुरुष के जितने आस्रव उतने ही निर्जरा के हेतु हैं।
२. क्रियाविशेष के आधार पर
असंयत व्यक्ति की उठने-बैठने
की जो क्रिया आसव के लिए होती है, संपत व्यक्ति की
वही क्रिया निर्जरा के लिए होती है ।
१३. आधार णाणी इह माणवाणं संसारपडिबन्नाणं संबुज्झमाणाणं विष्णाणपत्ताणं ।
सं०--आख्याति ज्ञानी इह मानवानां संसारप्रतिपन्नानां संबुद्धधमानानां विज्ञानप्राप्तानाम् ।
जो संसार स्थित हैं, सम्बोधि पाने को उन्मुख हैं, विवेकी हैं, उन मनुष्यों को ज्ञानी धर्म का बोध देते हैं।
३. उपचय - अपचय के आधार पर -
जो आस्रव हैं वे ही परिस्रव हैं- यह विकल्प साम्परायिक किया की अपेक्षा से है।
जो आश्रव हैं वे अपरिस्रव हैं यह विकल्प 'शून्य' है ।
जो अनास्रव हैं वे परिस्रव हैं - यह विकल्प शैलेशी अवस्था की अपेक्षा से है।
जो अनास्रव हैं वे अपरिस्रव हैं यह विकल्प सिद्धों की अपेक्षा से है।
प्रस्तुत सूत्र में बन्ध तथा निर्जरा के कुछेक रहस्य संकेतित हैं । कर्मवाद के रहस्यों को जानकर पुरुष हिंसा से विरत होता है, अथवा अहिंसा को स्वीकार करता है, अथवा आत्म-विकास की प्रक्रिया को जान लेता है, यही इसका तात्पर्य है ।
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ज्ञानी पुरुष बन्ध और निर्जरा के रहस्यों को जानकर उन मनुष्यों को धर्म का उपदेश देते हैं १. जो संसार स्थित हैं हिंसा में स्थित हैं, २. जो संबोधि पाने को उन्मुख हैं अर्थात् जो दुःखों से उद्विग्न हैं और सुख के खोजी तथा धर्मश्रवण के गवेषक हैं, तथा २. जो विज्ञान प्राप्त हैं अर्थात् जिनका विवेक उदित हो चुका है।
या प्रकारा यावन्तः, संसारावेश हेतवः । तावन्तस्तद्विपर्यासा, निर्वाणसुखहेतवः ॥
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