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अ० ३. शीतोष्णीय, उ० ४. सूत्र ७६-७८
७८. वंता लोगस्स संजोगं, जंति वीरा महाजाणं । परेण परं जंति, नाव कं खंति जीवियं ।
सं०– वान्त्वा लोकस्य संयोगं यान्ति वीराः महायानम् । परेण परं यान्ति, नावकाङ्क्षन्ति जीवितम् ।
वोर साधक लोक के संयोग को त्याग कर महायान - महापथ या क्षपकश्रेणि को प्राप्त होते हैं । वे आगे से आगे बढते जाते हैं। वे जीने की आकांक्षा नहीं करते ।
भाष्यम् ७८ – लोक: आत्मव्यतिरिक्तः धनपुत्रशरीरादिः । तस्य संयोगः ममत्वपूर्वक संबंध: कर्मबन्धस्य निमित्तं भवति, अतस्तं लोकसंयोगं वान्त्वा वीरा महायानं
यान्ति महायानम् - महापथः, क्षपकश्रेणिरिति तात्पर्यम् । यथा यथा लोकसंयोगस्य परित्यागो भवति तथा तथा महायानं प्रति गतिर्भवति । अत एषोच्यतेमहायानं प्रति प्रस्थिताः परेण परं'–उत्तरोत्तरं तेजो श्यामवाप्नुवन्ति यथा भगवत्यां निरूपितमिदम् -
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जे इमे भंते ! अज्जत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति, ते णं कस्स तेयनेस्सं वीईवयंति ?
गोयमा ! मासपरियाए समणे निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्स बीईवयइ ।
दुमासपरियाए समणे निम्गंधे असुरिदवज्जियाणं भवणवासीणं देवानं तेयलेस्सं बीईवयइ ।
एवं एएवं अभिलावेणं-तिमासपरियाए समणे निग्गंधे असुरकुमाराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवय ।
उम्मापरिया समणे निग्गंथे गहगण - नक्खत्ततारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ ।
पंचमासपरियाए समणे निम्गंचे चंदिम सूरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसराईणं तेयलेस्स वीईवयइ ।
छम्मासपरियाए समणे निग्गंथे सोहम्मीसाणाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ ।
सत्तमासपरियाए समणे निग्गंथे सणकुमारमाहिंदाणं देवाणं तेयलेस्स बीईवयइ ।
अट्टमासपरियाए समणे निग्गंचे बंभलोग-संतगाणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ ।
नवमास परियाए समणे निग्गंथे महासुक्क सहस्साराणं देवाणं तेयलेस्सं वीईवयइ ।
दसमासपरियाए समणे निग्गंचे आणय-पाणयआरणच्या देवाणं तेयलेस्सं बीईवय |
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आत्मा के अतिरिक्त धन, पुत्र, शरीर आदि लोक है । उसका संयोग ममत्वपूर्वक संबंध कर्मबंध का निमित्त होता है। इसलिए उस लोक-संयोग को छोड़कर वीर पुरुष महायान पर चलने लगते हैं । महायान का अर्थ है महापथ। इसका तात्पर्य है- क्षपकश्रेणि । जैसे-जैसे लोक-संयोग का परिहार होता है, वैसे-वैसे महायान के प्रति गति होती है। इसलिए यह कहा जाता है जो महायान के प्रति प्रस्थित हैं ये उत्तरोत्तर (विशुद्ध) तेजोलेश्या को प्राप्त होते जाते हैं। भगवती सूत्र में इसका निरूपण इस प्रकार है
गणधर गौतम ने भगवान् महावीर से पूछा- 'भंते ! आज जो श्रमण-निर्व्रन्थ विहरण कर रहे हैं, वे किसकी तेजोलेश्या का अतिक्रमण करते हैं ?'
भगवान् ने कहा- 'गौतम ! एक मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ व्यन्तर देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
दो मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्वन्ध असुरेन्द्र के अतिरिक्त सभी भवनपति देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
इस प्रकार इस अभिलाप से तीन मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ असुरकुमार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
चार मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ग्रह-नक्षत्र और तारा रूप ज्योतिष देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
पांच मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ज्योतिष्क इन्द्र, ज्योतिष्कराज चांद-सूर्य की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है।
छह मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सौधर्म और ईशान देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
सात मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
आठ मास की संयम - पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ब्रह्मलोक और लान्तक देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
नौ मास की संयम-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महाशुक्र और सहस्रार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
दस मास की संयम पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ आनत और प्राणत तथा आरण और अच्युत देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण कर देता है ।
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