________________
आचारांगभाष्यम्
भगवता प्रोक्तं ते शुभाशभेन करणेन वेदनां भगवान् ने कहा-वे शुभ-अशुभ करण से वेदना का वेदन वेदयन्ति, नो अकरणतः ।।
___ करते हैं, अकरण से नहीं। गौतमः--भगवन् ! असंज्ञिनः प्राणिनः पृथ्वी- गौतम-भगवन् ! पृथ्वीकायिक आदि असंज्ञी प्राणी अन्ध, कायिकादय अन्धा मूढाः तमःप्रविष्टाः सन्तः अमनस्क- मूढ और अन्धकार में निमग्न होने के कारण अमनस्कहेतुक वेदना का हेतुकां वेदनां वेदयन्ति । किमिदं सत्यम् ?
वेदन करते हैं। क्या यह सत्य है ? भगवान्–गौतम ! एतत् सत्यमस्ति ।
भगवान्–गौतम ! यह सत्य है। (४) शरीरावगाहना---गौतमः-भगवन् ! पृथ्वी- (४) शरीरावगाहना--गौतम-भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों कायिक जीवानां कियती महती शरीरावगाहना भवति? के शरीर को अवगाहना (परिपाण) कितनी बड़ी होती है ?
भगवान गौतम ! चातुरंतचक्रवर्तिन एका काचित भगवान्-गौतम ! चातुरन्त चक्रवर्ती की स्थिर हस्ताग्र (हथेली स्थिराग्रहस्ता औरस्यबलसमन्वागता तरुणी एकं पृथ्वी- तथा अंगुलियों) वाली तथा शारीरिक शक्ति से सम्पन्न कोई एक युवती कायखण्डं गृहीत्वा तीक्ष्णायां वज्रमय्यां श्लक्षणकरण्यां तीक्ष्ण बज्रमयी चिकनी खरल में तीक्ष्ण बज्रमय वर्तक (बट्टे) से तीक्ष्णेन वज्रमयेन वर्तकेन (शिलापुत्रकेन) एकविंशति- पृथ्वीकाय के एक टुकड़े को इक्कीस बार पीसती है। तब भी कुछ वारं पिनष्टि । तदानीमपि केचित् संघट्टिता भवन्ति पृथ्वीकायिक जीव संघट्टित होते हैं और कुछ नहीं, कुछ परितापित होते केचिच्च नो, केचित् परितापिता भवन्ति केचिच्च नो, हैं और कुछ नहीं, कुछ भयभीत होते हैं और कुछ नहीं, कुछ स्पृष्ट केचिदुपद्रता भवन्ति केचिच्च नो, केचित् स्पृष्टा भवन्ति होते हैं और कुछ नहीं। इतनी सूक्ष्म अवगाहना होती है पृथ्वीकायिक केचिच्च नो। इयती सूक्ष्मशरीरावगाहना तेषां पृथ्वी- जीवों के शरीर की । कायिकजीवानाम् ।
(५) दृश्यता-पृथ्वीकायिकजीवाः सूक्ष्मशरीराव- (५) दृश्यता-पृथ्वीकायिक जीवों के शरीर को अवगाहना गाहनावन्तः सन्ति, तेन नैकद्वयादिजीवानां शरीराणि सूक्ष्म होती है, इसलिए एक-दो जीवों के शरीर दीखते नहीं हैं । किन्तु दष्टानि भवन्ति, किन्तु तेषामसंख्यजीवानां पिण्डीभूतानि उन असंख्य जीवों के पिण्डीभूत शरीरों को ही हम देख सकते हैं । शरीराणि वयं द्रष्टुं शक्नुमः ।
(६) भोगित्वम्-गौतमः-पृथ्वीकायिकजीवा किं (६) भोगित्व-गौतम ने पूछा-भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कामिनो भोगिनो वा?
कामी होते हैं या भोगी?
१. अंगसुत्ताणि २, भगवई ६।१३ : पुढवीकाइयाणं एवामेव पुच्छा, नवरं-इच्चेएणं सुभासुभेणं करणेणं पुढविक्काइया
करणओ वेमायाए वेदणं वेदेति, नो अकरणओ। २. वही, भगवई ७।१५० : जे इमे भंते ! असणिणो पाणा, .. तं जहा-पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया, छट्ठा य
एगतिया ता-एए णं अंधा, मूढा, तमंपविट्ठा, तमपडलमोहजाल-पडिच्छन्ना अकामनिकरणं वेदणं वेतीति वत्त वं सिया? हंता गोयमा ! जे इमे असण्णिणो पाणा जाव वेदणं वेतीति
वत्तव्वं सिया। ३. वही, भगवई १९:३४ : पुढविकाइयस्स णं भंते !
केमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता ? गोयमा ! से जहानामए रणो चाउरंतचक्कबट्टिस्स वण्णगपेसिया तरुणी बलवं जुगवं जुवाणी अप्पायंका थिरग्गहत्था दढपाणि-पाय-पास-
पितरोरुपरिणता तलजमलजुयलपरिघनिमबाहू उरस्सबलसमण्णागया लंघण-पवण-जइणवायाम-समत्था छेया दक्खा पत्तट्ठा कुसला मेहावी निउणा
निउणसिप्पोवगया तिक्खाए वइरामईए सहकरणीए तिक्खेणं वइरामएणं बट्टावरएणं एगं महं पुढविकाइयं जतुगोलासमाणं गहाय पडिसाहरिय-पडिसाहरिय पडिसंखिविय-पडिसंखिविय जाव इणामेवत्ति कट्ट तिसत्तक्खुत्तो ओप्पीसेज्जा, तत्थ णं गोयमा ! अत्थेगतिया पुढविक्काइया आलिद्धा अत्थेगतिया पुढविक्काइया नो आलिद्धा, अत्थेगतिया संघट्टिया अत्यंगतिया नो संघट्टिया, अत्थेगतिया परियाविया अत्थेगतिया नो परियाविया, अत्यंगतिया उद्दविया अत्थेगतिया नो उद्दविया, अत्थेगतिया पिट्ठा अत्थेगतिया नो पिट्ठा, पुढविक्काइयस्स णं गोयमा ! एमहालिया सरीरोगाहणा पण्णत्ता। ४. आचारांग नियुक्ति, गाथा ८२,८३ : इक्कस दुण्ह तिण्ह व संखिज्जाण व न पासिउं सक्का । दोसंति सरीराइं पुढविजीयाणं असंखाणं ॥ एएहि सरीरेहि पच्चक्खं ते परूविया हुंति । सेसा आणागिझा चक्खु फासं न जं इंति ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org