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आचारांगभाष्यम ५४. से बेमि-संति पाणा उदय-निस्सिया जीवा अणेगा।
सं० -तद् ब्रवीमि–सन्ति प्राणा उदकनिश्रिताः जीवा अनेके ।
मैं कहता हूं-जल के आश्रय में अनेक प्राणधारी जीव हैं। ५५. इहं च खलु भो! अणगाराणं उदय-जीवा वियाहिया।
सं०-इह च खलु भो ! अनगाराणां उदकजीवाः व्याहृताः । हे पुरुष ! इस अनगार-दर्शन (अर्हत्-दर्शन) में जल स्वयं जीवरूप में निरूपित है।
भाष्यम ५४,५५-तस्मिन् समये न केनापि दार्शनिकन उस समय कोई भी दार्शनिक 'जल सजीव है' ऐसा स्वीकार जलं सजीव मिति स्वीकृतम् । 'जले जीवा भवन्ति' इति- नहीं करता था। 'जल में जीव होते हैं' यह मत प्रचलित था। इसे मतमासीत । एतत स्पष्टीकर्त प्रवचन मिदम् । जिनप्रवचने स्पष्ट करने के लिए यह सारा प्रवचन है। जिन-प्रवचन में जल स्वयं जलं स्वयं सचेतनं प्रतिपादितम् । जलाश्रिता अनेके जीवा सचेतन प्रतिपादित हुआ है। जल के आश्रित अनेक जीव होते हैं । वे भवन्ति । न ते अप्कायिका जीवाः, किन्तु ते जले अकायिक जीव नहीं हैं, किन्तु वे जल में उत्पन्न होने वाले त्रसकायिक समपन्नास्त्रसकायिकाः जीवाः सन्ति । आधुनिकैर्जले जीव हैं। आधुनिक वैज्ञानिकों ने जल में जीवों की गणना की है। जीवानां गणना कृता । तेऽपि सन्ति जलाश्रिता एव, न वे भी जलाश्रित जीव ही हैं, जलकायिक जीव नहीं हैं। तु जलकायिकाः।' ५६. सत्थं चेत्थ अणुवीइ पासा।
सं0-शस्त्रं चात्र अनुवीचि पश्य । हे पुरुष ! इन जलकायिक जीवों के शस्त्र को विवेकपूर्वक देख ।
भाष्यम् ५६ --'अप्काथिकजीवानां शस्त्राणि- 'अप्कायिक जीवों के शस्त्र अर्थात निर्जीव करने के साधनों को निर्जीवकरणसाधनानि विवेकपूर्वकं त्वं पश्य' इति तू विवेक पूर्वक देख'--यह निर्देश शिष्यों की मति को प्रबुद्ध करने के शिष्यमतिप्रबोधाय निर्देशः कृतः। तदा शिष्येण पृष्टं- लिए किया गया है । तब शिष्य ने प्रश्न पूछा-'वे शस्त्र कौनसे हैं ?' कानि तानि शस्त्राणि ? इति जिज्ञासायामुत्तरितम्- इस जिज्ञासा के उत्तर में बताया गया है -- ५७. पुढो सत्थं पवेइयं ।
सं०-पृथक् शस्त्र प्रवेदितम् । जलकायिक जीवों के शस्त्र अनेक हैं।
भाष्यम् ५७-अप्काथिकजीवानां प्राणघाताय अप्कायिक जीवों को निष्प्राण करने वाले अनेक शस्त्र बतलाए अनेकानि शस्त्राणि सन्ति प्रवेदितानि । निर्युक्तौ तेषां गये हैं । नियुक्ति में उनका नामोल्लेखपूर्वक निरूपण हैनामोल्लेखपूर्वकमस्ति निरूपणम्'उस्सिचण-गालण-धोवणे य उवगरणमत्तभंडे य ।
उत्सेचन, गालन, उपकरण-अमत्र-भण्ड का धावन, बादर बायरआउक्काए एयं तु समासओ सत्यं ।'
अप्काय-यह संक्षेप में शस्त्रों का निरूपण है।
१. (क) आचारांग चूणि, पृष्ठ २७ : संति विज्जति पायसो उदए सव्वलोए पतीता पूतरगादि तसा विज्जति तदस्सिता, ण उदगं जीवा जहा सक्काणं, अण्णेसि णवि उदगं जीवा, णवि अस्सिता जीवा जे पूतरगादि, ते खित्तसंभवा, ण आउक्कायसंभवा। (ख) जल-निश्रित जीवों और जलकायिक जीवों के सम्बन्धसूचक चार विकल्प होते हैं
१. सजीव जल और जल-निश्रित जीवों का अस्तित्व । २. सजीव जल, किन्तु जल-निश्रित जीवों का अभाव । ३. निर्जीव जल, किन्तु जल-निश्रित जीवों का अस्तित्व । ४. निर्जीव जल और जल-निश्रित जीवों का अभाव । जल तीन प्रकार का होता है-सजीव, निर्जीव और मिश्र ।
(आचारांग चूणि, पृष्ठ २७) २. आचारांग नियुक्ति, गाथा ११३ ।
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