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अ० १. शस्त्रपरिज्ञा, उ० २. सूत्र २८
भगवान्-नो कामिनः, किन्तु स्पर्शनेन्द्रियं प्रतीत्य भगवान-गौतम ! वे कामो नहीं होते, किन्तु स्पर्शनेन्द्रिय की केवलं भोगिनः ।
अपेक्षा से केवल भोगी होते हैं। (७) आश्रवादि-गौतमः-किमेतत् सत्यम् --- (७) आश्रव आदि-गौतम ---भंते ! क्या यह सत्य है कि कदाचित् पृथ्वीकायिकजीवा महाश्रवा महाक्रिया महा- पृथ्वीकायिक जीव कभी महाआस्रव बाले, महाक्रिया वाले, महावेदना वेदना महानिर्जरा भवन्ति, कदाचिच्च अल्पाश्रवा वाले और महानिर्जरा वाले होते हैं तथा कभी अल्पआस्रव वाले, अल्पअल्पक्रिया अल्पवेदना अल्पनिर्जरा भवन्ति ? क्रिया वाले, अल्पवेदना वाले और अल्पनिर्जरा वाले होते है ? भगवान् - गौतम ! अस्ति सत्यमिदम् ।'
भगवान् - गौतम ! यह सत्य है। (८) जरा, शोकः-गौतमः—पृथ्वीकायिकजीवानां किं (८) जरा और शोक-गौतम-भंते ! क्या पृथ्वीकायिक जरा भवति शोकश्च ?
__जीवों के जरा और शोक होते हैं ? भगवान गौतम ! पृथ्वीकायिकजीवाः शारीरिकी भगवान --गौतम ! पृथ्वीकायिक जीव शारीरिक वेदना का वेदनां वेदन्ति, तेन तेषां जरा भवति । ते मानसिकी वेदन करते हैं, इसलिए उनके जरा होती है। वे मानसिक वेदना का वेदनां न वेदयन्ति, तेन तेषां शोको न भवति । वेदन नहीं करते, इसलिए उनके शोक नहीं होता।
(९) उन्मादः-गौतमः -भगवन् ! उन्मादः (९) उन्माद-गौतम -- भगवन् ! उन्माद कितने प्रकार का कतिधा ?
होता है ? भगवान गौतम ! द्विविध उन्माद:-यक्षावेश- भगवान गौतम ! उन्माद दो प्रकार का होता हैजनितः मोहोदयजनितश्च ।
यक्षावेशजनित और मोहोदयजनित । गौतमः---भगवन् ! पृथ्वीकायिकजीवेषु उन्मादो गौतम--भगवन ! पृथ्वीकायिक जीवों में उन्माद होता है भवति न वा?
या नहीं? भगवान् ---गौतम ! तेषु द्विविधोऽपि उन्मादो भगवान् गौतम ! उनमें दोनों प्रकार का उन्माद होता है। भवति । प्रेतादिभिरशुभपुद्गलप्रक्षेपजनितः-यक्षावेश- प्रेत आदि के द्वारा अशुभ पुद्गलों के प्रक्षेपण से होने वाला उन्माद जनितः, मोहकर्मविपाकजनितश्च मोहोदयजनितः। यक्षावेशजनित और मोहकमं के विपाक से होने वाला उन्माद मोहोदय
जनित कहलाता है। इदानीमपि प्रेताभिभूतानां हीरकाणां तथाविध वर्तमान में भी देखा जाता है कि प्रेत से अभिभूत हीरों के १ अंगसुत्ताणि २, भगवई ७।१३८-१४२ : जीवा णं भंते ! हंता सिया। कि कामी ? भोगी?
३. वही, भगवई, १६।३०-३१-पुढविकाइयाणं भंते ! कि गोयमा ! जीवा कामी वि, भोगी वि ।
जरा? सोगे? से केणठेणं भंते एवं बुच्चइ-जीवा कामी वि? भोगी वि? गोयमा ! पुढविकाइयाणं जरा, न सोगे। गोयमा ! सोइंदिय-क्खिदियाई पडुच्च कामी, घाणिदिय
से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चइ - पुढविकाईयाणं जरा नो जिभिदिय-फासिदियाई पडुच्च भोगी। से तेणठेणं
सोगे? गोयमा ! एवं वुच्चइ-जीवा कामी वि , भोगी वि।
गोयमा ! पुढविकाइया णं सारीरं वेदणं वेति, नो माणसं
वेदणं वेति । से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चइपुढविक्काइयाणं-पुच्छा ।
पुढविकाइयाणं जरा, नो सोगे। गोयमा ! पुढविक्काइया नो कामी, भोगी।
४. अंगसुत्ताणि २, भगवई १४।१६-२० : कतिविहे गं भंते ! से केण?णं जाव भोगी ?
उम्मादे पण्णते ? गोयमा ! दुविहे उम्मादे पण्णते, तं गोयमा ! फासिदिय पडुच्च । से तेणठेणं जाव भोगी।
जहा-जक्खाएसे य, मोहणिज्जस्स य कम्मस्स उदएणं । २. वही, भगवई १९।५५-५६ सिय भंते ! पुढविक्काइया
तत्थ णं जे से जक्खाएसे से णं सुहवेयणतराए चेव सुहविमोयणमहासवा महाकिरिया महावेयणा महानिज्जरा?
तराए चेव । तत्थ णं जे से मोहणिज्जस्स कम्मस्स उदएणं हंता सिया।
से णं दुहवेयणतराए चेव दुहविमोयणतराए चेव ।............ सिय भंते ! पुढविक्काइया अप्पासवा अप्पकिरिया अप्प
से तेणठेणं जाव...."पुढविकक्काइयाणं जाव मणुस्साणं वेयणा अप्पनिज्जरा?
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