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व्रत कथा कोष
तिथि होती रहती है। अब प्रश्न यह उठता है कि जब ६० घटिका प्रमाण कोई तिथि न हो तो व्रतादि के लिए कौन सी तिथि ग्रहण करना चाहिए, क्योंकि पांच घटिका के हिसाब से तिथि वृद्धि और छह घटिका के हिसाब से तिथि का क्षय होता है ।
उदाहरण--जेष्ठ शुक्ला पंचमी मंगलवार को ५ घटिका ३० पल है । जिस व्यक्ति को पंचमी का व्रत करना हो, क्या वह पंचमी का व्रत मंगलवार को करेगा ? यदि मंगलवार को व्रत करता है तो उस दिन ५ घटिका ३० पल अर्थात् सूर्योदय से २ घण्टा १२ मिनट तक पंचमी है, उसके बाद षष्ठि तिथि पाती है । व्रत उसे पंचमी का करना है, षष्ठि का नहीं । फिर वह किस प्रकार व्रत करें ?
प्राचार्य ने विभिन्न मतमतान्तरों का खण्डन करते हुए कहा है कि जिस दिन सूर्योदय काल में ६ घटिका से न्यून तिथि हो उस तिथि का व्रत नहीं करना चाहिए। किन्तु उसके पहले दिन व्रत करना चाहिए। जैसे उक्त उदाहरण में पंचमी का व्रत मंगलवार को न करके सोमवार को करना चाहिए ? क्योंकि मंगलवार को पंचमी तिथि ५ घटिका से कम है। यदि मंगलवार को पंचमी तिथि ६ घटिका १५ पल होती तो, वह व्रत इसी दिन किया जाता । तिथियों का मान घटिका, पल प्रत्येक पंचांग में लिखा रहता है।
व्रत के अलावा अन्य कार्यों के लिए वर्तमान तिथि ही ग्रहण की जाती है । प्रर्थात् जिस कार्य का जो काल है, उस काल में जो तिथि व्याप्त हो उसे ही ग्रहण करना चाहिए । उदाहरणार्थ यों कहा जा सकता है कि किसी व्यक्ति को जेष्ठ शुक्ला पंचमी में विद्यारम्भ करना है । जेष्ठ पंचमी मंगलवार को ५ घटिका ३० पल है तथा सोमवार को जेष्ठ सुदी चतुर्थी १० घटिका १५ पल है । विद्यारम्भ के लिए सोमवार ठीक रहता है, सोमवार चतुर्थी छह घटिका से ज्यादा है, व्रत के लिए इस दिन चतुर्थी कहलायेगी परन्तु १० घटिका १५ पल के उपरान्त पंचमी मानी जाएगी।
१० घटिका १५ पल के चार घण्टा छह मिनट हुए । सूर्योदय इस दिन ५ बजकर २० : मिनट पर होता है। प्रतः । बजकर २३ मिनट के पश्चात् सोमवार को विद्यारम्भ
किया जा सकता है । यात्रा के लिए भी यही बात है । यदि किसी को पश्चिम दिशा में जाना हो तो वह पंचमी तिथि में ६ बजकर २३ मिनट के पश्चात् जायेगा तथा पूर्व में जानेवाला मंगलवार को पंचमी तिथि रहते हुए प्रातःकाल ७ बजकर ३२