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व्रत कथा कोष
न्दिदेवा उपेक्षन्तेऽनाद्रियन्तेऽतः कुन्दकुन्दाद्य ुपदेशात् रसघटिका ग्राह्या कार्या इत्यर्थाः ।।६।।
अर्थ :- किसी के मत . ( केशवसेन के मत ) से दस घटिका तिथि होने पर भी सूर्योदय से लेकर दस घटिका तक अर्थात् चार घण्टे तक तिथि के रहने पर दिन भर के लिए वही तिथि मानी जाती है । दूसरे प्राचार्यों के मत से बीस घटिका अर्थात् सूर्योदय से आठ घण्टे तक रहने पर ही तिथि दिनभर के लिए मानी गयी है ।
आचार्य केशवसेन के मत से सूर्योदय काल में दस घटिका रहने पर ही तिथि ग्राह्य मान ली जाती है । सेनगरण काष्ठपारिणों के मत में बीस घटिका रहने पर ही तिथि ग्राह्य मानी जाती है । इन दो सम्प्रदायों के मतों को ( दस घटिका और बीस घटिका वाले मतों को ) मूलसंघ के प्राचार्य प्रमाण नहीं मानते हैं । अतः इन दोनों मतों के अलावा बहुतों के द्वारा माना गया कुलाद्रिमत माना गया है । इस मत के द्वारा समर्थित निर्दोष परम्परा से प्राप्त तथा इस निर्दोष परम्परा के उपदेशक आचार्यों के वचन से एवं सभी मनुष्यों में प्रसिद्ध होने से छह घटिका - प्रमाण तिथि को प्रमाण माना गया है ।
तिथि का जो अन्य मान माना गया है, वह कल्पना मात्र है, समिचीन नहीं है । इसकी सेन और नन्दिगरण के आचार्य उपेक्षा अर्थात् अनादर करते हैं । अतः एव कुन्दकुन्दादि आचार्यों के उपदेश से सभी मतों की अपेक्षा छह घटिका प्रमाण तिथि का मान ग्राह्य है ।
विवेचन - जिस प्रकार तारिख चौबीस घंटे तक ही रहती है, उस प्रकार तिथि २४ घण्टे तक नहीं रहती है । तिथि में वृद्धि और ह्रास होता है । कभी-कभी एक तिथि दो दिन तक जाती है । जिसे तिथि की वृद्धि कहते हैं । कभी-कभी किसी तिथि का लोप हो जाता है । जिसे अवम या क्षयतिथि कहते हैं । अधिक से अधिक एक तिथि २६ घण्टा ५४ मिनिट तक हो सकती है । अर्थात् पहले दिन जो तिथि सूर्योदय से प्रारम्भ होती है, वह अगले दिन सूर्योदय के बाद २ घण्टा ५४ मिनिट तक रह सकती है । एक तिथि का घटात्मक या दण्डात्मक मान ६७ घटिका १५ पल होता है । प्रायः ६० घटिका तिथि एकाध ही होती है । प्रतिदिन हीनाधिक प्रमाण