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* सम्बन्धाननुगमम्याग्दीपतारीजाविकार: * | तायाः तावत्सम्बन्धपर्याप्त प्रतियोगितावच्छेदकतावच्छेदकताकान्योन्याभावघटिताया वा | व्याप्तेरसोदेल काराणताया अदात् ।
- जयलता त्यन्ताभावेन गर्भितायाः, व्याप्तः इदं विशेषगम् । लाघवानरोधात कल्पान्तरमाह-जावत्सम्बन्धपर्याप्त प्रतियोगितावच्छेदकताबचोदकताकान्योन्याभावघटितायाः = निरुक्तसम्बन्धपर्याप्साया: प्रतियोगितावादकतावच्छेदकताया निरूपकेगाइन्पान्थाभावन घटितायाः, व्याप्तेः अभेदन = मंदविरहेण, कारणताया अभेदात् । अयं भावः कार्यतावच्छेदकसम्बन्धेन स्वाव्यवहितपूर्वक्षणाबच्छेदन यत्र कार्य तत्र कारणतावच्छेदकसम्बन्धन बावत्कारणतावच्छेदकावच्छिन्नसत्त्वमिति कार्य कारणाभावववृत्यभारप्रतियोगित्वाभावरूपा कारणबदन्पवृत्त्यभावप्रतियोगित्वाभावस्वरूपा वा व्याप्तिः वर्तते । नत्र कारणात्यन्ताभावश्च यावत्कारणता| बच्छेदकसम्बन्धेषु पर्याप्ता या कारणनिष्ठानियागिताया अबच्छंदकता ननिरूपको ग्राह्यः । द्वितीयव्याप्तिघटकः कारणवत्ततियोगिकभेदश्च सकलकारणतावच्छेदकसम्बन्धेषु 'पर्याप्ता या कारणवन्निष्ठभेदीयप्रतियोगिताया अबछेदकीभूनकारणनिष्ठावच्छेदकत्वस्पावच्छेदकता ननिरूपको बोध्यः । यावन्तः कारणतावच्छेदकसम्बन्धाः तावत्सम्बन्धपर्याप्तायाः प्रतियोगितावचंदकतायाः प्रतियोगितावच्छेदकताबच्छेदकताया वा अभिन्नत्वेन तटिना न्याप्तिरपि न मिद्यत । तदभेदत्र कार्याव्यवहितपाकक्षणावच्छेदन | कार्यतावच्छेदकसम्बन्धेन कार्याधिकरणवृत्त्यत्यन्ताभावनिरूगितप्रतियोगिल्वाभावस्वरूपा व्याप्तिनिरूपिका व्यापकतात्मिका कारणताऽपि नब बिभिद्यते इति विभावनीयम् ।
यदि च कारणतावच्छेदकसम्बन्धाननुगतौ कारणताया अवश्यं भेदस्तहि, चाक्षुषसामान्य प्रति चक्षष्टवन कारणत्वाभिधानमपि कधं सगळेत ? न हि चक्षुरेकमेव प्रत्यासत्त्या स्वविषयदेशे चाक्षुषं जनयति । विषयतासम्बन्धन द्रव्यचाक्षुयं प्रति चक्षुपः स्वसंयोगसम्बन्धेन कारणत्वान, रूपादिचाक्षुषं प्रति स्वसंयुक्तसमवायन, रूपत्वादिचाक्षुष प्रति स्वसंयुक्तसमवेत - समवायन, द्रव्यवृन्यभावचाक्षुषं प्रति स्वसंयुक्तविशेषणतया, रूपादिवृत्त्यभावचाक्षुषं प्रति स्वसंयुकसमवेतविशेषणतया, रूपत्यादिवृन्यभावानुषं प्रनि च स्वसंयुक्तसमवेतसमवेतविशेषणतया । कारणतावच्छेदकप्रत्यारानिभेदेऽपि निरुक्तरीत्या कारण
स्योंकि सम्बन्धाननुगम वास्तव में दोप ही नहीं है। कारणतावदक धर्म आदि में ही अननुगम होपस्वरूप है, न कि कारणताबच्छेदकादि सम्बन्ध में अननुगम। कारणतावच्छेदक आदि धर्म में अननुगम होने पर कारणना भी अननुगन = विभिन्न हो जाने से कारणतावच्छेदक धर्म में अननुगम दोधात्मक माना गया है। कारणनाअवच्छेदक सम्बन्ध में अननुगम होने पर कारणता अननुगत = भिन्न होती नहीं है। अतएव वह दोपस्वरूप नहीं है। कारणतावच्छंदकसम्बन्ध में अननुगम होने पर भी कारणता अननुगत नहीं बनने का कारण क्या है ? इस समस्या का समाधान सुनिये, कार्यतावनडेदकसम्बन्ध से स्वाव्यवहितपूर्वक्षणावच्छेदन कार्य जहाँ रहता है वहाँ कारणतावच्छेदकसम्बन्ध से यावत् कारण रहने हैं । अतः कार्य याप्य है और कारण व्यापक है। कार्य में जो कारण या कारणता से निरूपित व्याप्ति रहती है वह द्विविध है (१) कारणाभावववृत्त्यत्यन्ताभावप्रतियोगिताऽभावात्मक एच (२) कारणवदन्यवृत्त्यत्यन्ताभाषप्रतियोगित्वाभावस्वरूप । कारणतावच्छेदकसम्बन्ध से कारण जहाँ रहने नहीं हैं वहाँ कार्यतावटक सम्बन्ध से कार्य नहीं रहने से वहाँ रहनेवाले अन्यन्ताभाव का प्रतियोगी कार्य बनना नहीं है। अतएव तादृशप्रतियोगिलाभावस्वरूप न्याप्ति कार्य में रहेगी । एवं कारणतावच्छेदकसम्बन्ध में कारणविशिए से भिन्त्र में रहनेवाले अत्यन्ताभाव की प्रतियोगिता कार्य में रहनी नहीं है । प्रथम त्र्यालि के घटक कारणात्यन्ताभाव की प्रतियां गिला की अबञ्छंदकना ( = अवच्छेदकसंमर्गना) याक्कारणतावदकसम्बन्ध में पर्याप्त ( = पर्याप्तिसम्बन्ध से रहनेवाली) हो वहीं अभिमत है, जो कारणतावच्छेदकसम्बन्ध अनेक | होने पर भी एक ही है, जैसे घट और पर अलग होने पर भी उनमें पर्याप्त द्वित्व संख्या अभिन्न ही है । कारणाभावीयप्रतियो| गिता अवच्छेदकता अभिन होने से उससे घटित व्याप्ति भी भिन्न होती नहीं है । एवं दूसरी व्याप्ति के घटक कारणवदन्योन्याभाच ( कारणवदन्यत्व) के प्रतियोगी कारणविशिष्ट में रहनेवाली भेदप्रतियोगिता के अवन्टेदक = कारण में रहनेवाली भेटप्रतियोगितावच्छेदकता के अवच्छंदक सम्बन्ध में रहनेवाली भेप्रतियोगितावच्छेदकनावदकता भी यावत्कारणतावनोदकसम्बन्ध में पर्याप्त हो वही अभिप्रेत है । वह एक होने में उससे घटित उपयुक द्वितीय व्याप्ति भी भिन्न होती नहीं है। इस तरह कारणवावच्छेदक सम्बन्ध में अननुगम होने पर भी द्विविध व्याप्ति विभिन्न होती नहीं है । व्याप्ति अभिन्न होने में व्याप्तिनिरूपित कारणना भी बदलती नहीं है । अतएव कारणतावच्छेदकसम्बन्ध में अननगम टोपात्मक नहीं है।
& edurછે, સતવધ મેં ઝlgી વિલ ફક अत एव. इति । उपर्युक्त रीति से कारणतावच्छेदकसम्बन्ध में अननुगम कारणताभेदक म होने से ही संयोग आदि