Book Title: Syadvadarahasya Part 3
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 28
________________ * असमवायिकारणत्वस्याननुगतत्वम् * हेतुतेति पाकरूपयोर्न पार्थक्येन कारणतेत्याहु: । तच्चिन्त्यं असमवायिकारणत्वस्याउननुगतत्वाद् गुरुत्वाच्च । नीलादिकं प्रति नीलेतररूपादेः प्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धः स्वाऽरामवायिकारणसमवायिसमवेतत्वमेव । न चेतरत्वस्यापि सम्बन्धमध्ये प्रवेशाप्रवेशाभ्यां विनिगमनाविरहः नीलेतररूपत्वादिना स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन प्रतिबन्धकतावा ८६१ * गगलवा * हेतो: पाक रूपयो : = विजातीयतेजः संयोगावयवरूपयो: न चित्ररूपविशेषं प्रति पार्थक्येन = स्वातन्त्र्येण कारणता कल्पनीया । समवायेन चित्रं प्रति नीलेतरादेरेव कारणत्वं किन्तु कारणतावच्छेदको न नीलेतरत्वादिः परन्तु चित्राऽसमवायिकारणत्वधर्म एव । कारणतासामान्यस्य कारणस्वरूपत्वात् चित्राऽसमवायिकारणता क्वचित् नीलेतरस्वरूपा क्वचित् पीतंतरात्मिका क्वचिच रक्तेतरादि-स्वरूपा वा । समवेतकार्यमात्रस्य स्वाऽसमवायिकारणजन्यत्वनियमस्य सर्वेरेव स्वीकृतत्वान्न चित्रं प्रति पाकरूपयो: पृथक्कारणत्व - कल्पनमित्यतिलाघत्रमिति केचित्तुमताभिप्रायः । = आहुरित्यनेनाऽस्वरसः प्रदर्शितः । तदेवाह तच्चिन्त्यमिति । चिन्ताबीजाविष्करणाग्राह असमवायिकारणत्वस्य | असमवायिकारणस्वरूपस्य अननुगतत्वात् सकलचित्रास मवायिकारणसङ्ग्राहकानतिप्रसक्तधर्मविरहितत्वात् नीलेतर - पीततरादीनां विजातीयत्वात् । न ह्यननुगतधर्मस्य कारणतावच्छेदकत्वं सम्भवति व्यभिचारप्रसङ्गात् । असमवायिकारणतावेन रूपेण तदनुगतीकृत्य चित्रहेतुतासमर्धनेऽपि असमवायिकारणत्वस्य गुरुत्वाच न चित्रकारणतावच्छेदकत्वं सम्भवति । स्वसमवायिकारणसमवेतत्वे सति समवेतकार्यजनिनियामकत्वे सति समवेतकार्यस्थितिनियामकत्वस्वरूपाया असमवायिकारणताया नीलेतरत्वाद्यपेक्षया गुरुत्वं स्फुटमेव । अत एव न तस्या: चित्रकारणतावच्छेदकत्वं सम्भवति सति लघुसमनियतधर्मे गुरौ नदयोगादिति दिक् । यस्य चित्रं प्रति हेतुत्वं तस्यैव नीलादिकं प्रति प्रतिबन्धकत्वम् । तत्र प्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धमेवादर्शयति नीलादिक समवायेन नोत्याद्यवच्छिन्न प्रति नीलंतररूपादे प्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धः स्वाऽसमवायिकारणसमवायिसमवेतत्वमेव । स्वपदेन चित्ररूपग्रहणम् । तस्याऽसमवायिकारणीभूतस्य नीलेतरादिरूपस्य समवायिनि अवयव समवेतो योऽवयवी तत्र निरुक्तसम्बन्धेन नीलंतररूपादेः सस्यान्न समवायेन नीलाद्युत्पादप्रसङ्गः । ननु तथापीतरत्वं नीलादिनिष्ठप्रतिबध्यतानिरूपित प्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धशरीरकुक्षी प्रवेशनीयं न बा ? इत्यन्त्राऽविनिंगमान्नैतत्प्रतिबध्यप्रतिबन्धकभावस्योपादेयत्वं स्यादित्याशङ्कामपाकर्तुमुपक्रमते न चेति । 'यश्वोभयोः समो दोषः परिहारस्तयो: सम' इत्याशयेन प्रतिवन्द्या प्रत्युत्तरयति नीलेतररूपत्वादिनेति । नीलादिकं प्रति नीलेतरादेः त्वया नीलेतररूपत्वादिना प्रतिबन्धकत्वमुपेयते मया तु स्वाऽसमवायिकारणत्वेनेत्येवं विशेषेऽपि नीलादिप्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धशरीरे पीतेतररूपासमवायिकारणत्व आदि रूप में ही हेतुता है । कपाल में नीलेतररूप का असमवायिकारण, पीनेतररूप का असमवायिकारण होने पर घट में चित्ररूप उत्पन्न होता है । इस कार्य कारणभाव का स्वीकार करने का लाभ यह है कि चित्र रूप के प्रति पाक और अवयवरूप में स्वतन्त्र कारणता की गुरुतर कल्पना करनी अनावश्यक होती है।' ← मगर विचार करने पर पह वक्तव्य असंगत प्रतीत होता है, क्योंकि चित्र रूप की कारणतावच्छेदकीभूत असमवायिकारणता असमवायिकारणस्वरूप होने से अननुगत है । समवायिकारणवृत्तित्वे सति समवेतकार्यजनकत्वं सति समवेतकार्यस्थितिनियामकत्वस्वरूप असमवायिकारणता गुरुतरवारीवाली है- यह तो स्पष्ट ही है । जो धर्म अननुगत (= अनेकत्र अवृत्ति) और गुरु हो वह कारणतावच्छेदक नहीं हो सकता है। अतः निरुक्त नीलेतरस्वरूपासमवायिकारणता, पीतेतरस्वरूपासमवायिकारणता आदि को चित्र रूप का कारणता - बच्छेदक नहीं माना जा सकता यह फलित होता है। यहाँ इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि समवाय सम्बन्ध से नीलादि रूप के प्रति नीलेतररूपादि प्रतिबन्धक होने से नीलेतर पीतेतरादि रूप से चित्र रूप की उत्पत्ति होने पर नीलादि रूप की उत्पत्ति का प्रसंग नहीं हो सकता । नीलादिरूपनिष्ठ प्रतिबध्यता से निरूपित नीलेतररूपादिनिष्ठ प्रतिबन्धकता का अवच्छेदकसम्बन्ध * स्वाऽसमवायिकारणसमवायिसमवेतत्व | स्वपद से चित्र रूप का ग्रहण करना अभिमत है। उसके असमवायिकारणीभूत नीलंतर आदि रूप चित्ररूप के समवायी कपालादि अवयव में अवयत्री घटादि समवेत होने से घट में नीलादि रूप उत्पन्न नहीं हो सकता । यहाँ यह शंका हो कि 'नीलादिप्रतिबन्धकतावच्छेदकसम्बन्धशरीर में इतरत्व का प्रवेश करना या नहीं ? इस विपय में कोई विनिगमक नहीं है। मतलब कि नीलेतरादि को स्वासमवायिकारणसमवायिसमवेतत्व सम्बन्ध से नीलादि का =

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