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५.६० मध्यमस्याबावरहस्य खण्डः ३ - का. * असमनायिकारणत्वेन हेतुताप्रकाशनम् *
अग्निसंयोगजचित्रे रूपजमकाग्निसंयोगोऽवच्छेदकत्वसम्बन्धावच्छिन्न प्रतियोगिताकनीलजनकाग्निसंयोगाभावादिषदकं स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन रूपाभावश्च हेतुः । रूपनचित्रे नीलादिजनकविजातीयसंयोगाभावानां बहन हेतुताकल्पनापेक्षयाऽग्निसंयोगजचित्रे रूपत्वावच्छिमाभावस्यैकस्य तधात्वे लाघवादित्यपि कश्चित् ।
केचित्तु नीलेतररूपाऽसमवायिकारणत्व-पीतेतररूपाऽसमवायिकारणत्वादिनैव चि प्रति Trenmururammarnarana मयलता *
अग्निसंयोगजचित्रे = पाकमात्रजन्यचित्रत्वावच्छिन्नं प्रति रूपजनकाग्निसंयोगः = विजातीयतेजःसंयोगः हेतरित्यत्रानुपज्यते । समवायेन पाकमात्रजचित्रं प्रति स्वसमवायिसमबेतत्वसम्बन्धेन विजातीयतेजःसंयोगस्य हेतुत्वमित्यर्थः, पाकमात्रज प्रति पाकस्य हेतुत्वौचित्यात्। 'तथापि पीतकपाले नीलजनकतंज:संयोगसत्वदायां नीलपीताभरकपालारब्धघंटे चित्रोत्पादप्रसङ्गस्य दुरित्वमि' त्याशङ्कायां हेत्वन्तरमाह अवच्छेदकत्वसम्बन्धावच्छिन्नप्रतियोगिताक-नीलजनकामिसंयोगाभावादिषट्कं हेतुरित्यबाप्यनुषज्यते । अवच्छेदकतासम्बन्धन नीलजनकतंज:संयोगादिषट्कस्प समवायेन पाकजं चित्रं प्रति प्रतिबन्धकत्वात् तदभावष ट्रकस्य प्रतिबन्धकाभावविधया पाकजचित्रकारणत्वम् । तेन पीतकपाले नीलजनकतेज:संयोगसन्चे नाल-पीनोभयकपालारब्धं घटे न चित्रप्रसः . अवच्छेदकतासम्बन्धेन नीलजनकनेज:संयोगसत्त्वेन तादशाभावपटकविरहात । यदा नीलजनकतेज:संयोगादि षटकमबच्छेदकतासम्बन्धन नास्ति तदैव रूपजनकतेज:संयोगेनाऽवयविनि चित्ररूपोत्पादसम्भवः प्रदर्शितकार्यकारणभावबलेनति भावः । पानावयवसपनाशानन्तरमेदाऽनिसंयोगेनाऽवयविनि चित्ररूपारम्भ इति समवायेन पाकनं चित्र प्रति स्वाश्रयसमचे तत्यसम्बन्धन रूपाभावध हेतुः, अवयवरूपस्य अग्निसंयोगजचित्रप्रतिबन्धकल्लादित्यभिप्रायः ।
नन रूप चित्रं प्रत्येव नीलादिजनकतेजःसंयोगाभावानां हेतुत्वं कल्यतामित्याशड़कायामाह ---> रूपजचित्रे = समवायन रूपजचित्रत्वावच्छिन्नं प्रति नीलादिजनकविजातीयसंयोगाभावानां नील-पीत-रक्तादिजनक-विजातीयतेज:संयोगप्रतियोगिकाभावानां, हेतुताकल्पनापेक्षया = कारणत्वम्वीकारापेक्षया, अग्रिसंयोगजचित्रे = समवायन पाकचित्रत्वावच्छिन्नप्रतियोगिताकाभावस्य, एकस्य तथात्वे = कारणत्वकल्पने, लाघवात् अर्धकृत-शरीरकृतादिलाघवात् इत्यपि चित्ररूपस्थले कश्चित् आहेति गम्यते ।
केवित्त्विति । अस्य आहुरित्यनेनान्वयः । नीलेतररूपासमवायिकारणत्व-पीतेतररूपाऽसमवायिकारणत्वादिनच = नीलंतरस्वरूपचित्रासमवायिकारणत्वेन, पतितरात्मकचित्रासमवायिकारणत्वेन, आदिना रक्तसरादिस्वरूपासमबायिकारणत्वापरिग्रहः । एबकारण नीलतरत्यादिव्यवच्छंदः कृतः । सभवायन चित्रं = चित्रत्वावच्छिन्नं प्रति हेतुता । तत्फलमाचक्षते ---> इति
अग्नि.इति । यहाँ अन्य विद्वानों का यह अभिप्राय है कि चित्र रूप के दो भेट हैं (१) पाकज और (२) रूपन। पाक का मतलब है विजातीय अग्रिमयोग । पाकज चित्र रूप के प्रति तीन कारणविशेष हैं (१) रूपजनक अनिसंयोग, जो स्वसमवायिसमवेत्तत्वसम्बन्ध से पाकज चित्ररूप का कारण है। एवं (२) अबोदकतासम्बन्धावच्छिमप्रतियोगिताक नीलादिजनकविजातीयाग्रिसयागाभानादिपदक भी हेतु है । अवयवी के अमुक अवयव में नीलजनक अप्रिसंयोग न हो, अमुक अवयव में पीनजनक अमिसंयोग न हो, अमुक अवयन में रक्तादिजनक अग्निसंयोग न हो तब अपच्छेदकलामम्रन्याचच्चिनप्रतियोगिताक नीलजनकाभिसंयोगाभावादिषट्क की उपस्थिति रहती है, जो अवयवी में चित्र रूप को उत्पन्न करता है । नीलजनक अनिसंयोगादि के होने पर तो अवयी में नीलादि रूप की ही उत्पनि होती है, न कि चित्र रूए की । अतः नीलजनकानिसंयोगाभारादिषट्क को चित्र रूप का हनु मानना आवश्यक है। (३) एवं अवयवी में स्वाश्रपसमवेतस्यसम्बन्ध में रूपाभाव भी चित्र रूप का कारण है । अवयव में रूप का नाश होने पर ही अवयची में चित्र रूप की उत्पत्ति होती है। इस तरह ये तीन चित्र रूप के कारण हैं। पति रूपजन्य चित्र रूप के प्रति नीलाविजनक अमिसंयोग के अभागे को हंतु माना जाय तर अनेक में चित्ररूपहेतुना की कल्पना का गौरव होता है । इसकी अपेक्षा पाकज चित्ररूप के प्रति रूपसामान्याभार को ही स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्ध से हेतु मानना मुनासिब है, क्योंकि वह एक होने में कारणता में लापन होता है। पाक से अवयवरूपों का नाश होने पर ही अवयवी में पाकज चित्र रूप उत्पन्न हो सकता है. पही मानना संगत है । ऐसा भी किमी विद्वान का वक्तव्य है।
केचि. इति । अमुक विद्वानों का यह कथन है कि → 'समवाय सम्बन्ध से चित्र रूप के प्रति नीलेतररूपासमवायिकारणत्व