Book Title: Syadvadarahasya Part 3
Author(s): Yashovijay Upadhyay, 
Publisher: Divya Darshan Trust

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Page 25
________________ ५५८ मध्यमस्याद्रादरहस्ये खण्ड: २ का ५ * रामभद्रसार्वभीममताविष्करणम् * गौरवादित्यपरे । अवयवेषु नानारूप-तत्प्रागभाव- प्रध्वंसादिकल्पने गौरवादित्यर्थः । चित्ररूपे रूपत्वेनैव हेतुता नीलमात्रारब्धे तु प्रागभावाभावादेव न चित्रोत्पत्तिः । अस्तु वा चित्रं प्रति चित्रेतररूपाभावस्य चित्रेतरत्प्रति च चित्राभावस्य कार्यसहभावेन हेतुता । अतो नातिप्रसङ्ग इति तु रामभद्रसार्वभौमाः । ॐ जयलता है विजातीयानलसंयोगानां वा कल्पने गौरवादित्यपरे । गौरवमेव स्पष्टयति अवयवेषु नानारूप तत्प्रागभाव प्रध्वंसाविकल्पने नीलपीता धनेकरूपाणां नीलपीतादिप्रागभावानां नीलपीतादिप्रागभावध्वंसानां, नीलपीतादिप्रध्वंसानां आदिपदेन नीलपीतादिजनकतावच्छेदकनानाजातिव्यतिरिक्ताया नीलपीताभयजनकतावच्छेदिकाया जाते, पाकनानात्वस्य नीलेतररूपादी नीलादिप्रतिबन्धकत्वरूप चित्रजनकत्वस्य च कल्पने गौरवादित्यर्थः । चित्ररूपं रामभन्नमतमाविष्करोति चित्ररूपे समवायेन चित्ररूपं प्रति रूपत्वेनैव हेतुता समवायिसमवेतत्वसम्बन्धावच्छिन्न रूपत्वावच्छिन्नकारणता । एवकारेण नीलेतरादिषट्क- नीलाभावादिषट्क- नील नीलजनकतेज:संयोगान्पतरत्वावच्छिन्नाभावादेर्व्यवच्छेदः कृतः । कारणतावच्छेदकलाघवानुरोधादयमेव कार्यकारणभावी गुतः । नन्वेवं सति नीलकपालद्वयारम्भं घटेऽपि समवायेन चित्रमुतायेत स्वसमवायिसमवेतत्वसम्बन्धेन रूपस्य तंत्र सत्त्वादित्याशङ्कायामाह नीलमात्रारब्धे नीलेतरशून्य-नीलरूपवदवयवसमवेते ऽवयविनि तु प्रागभावाभावात् विरह, स्वकारण नीलेारादिविरहव्यवच्छेदः कृतः न समवायेन चित्रोत्पत्तिः । = स्व. = ननु रूपस्य चित्ररूपाऽसमवायिकारणत्वस्वीकारे रूपसमवायिसमवेतं द्रव्यं वित्रप्रागभावेनाऽवश्यं भवितव्यम्, स्वासमवायिकारणस्य स्वप्रागभावत्र्याप्यत्वनियमात् । व्याप्यतावच्छेदकसम्बन्धः स्वकार्यं प्राककालीनत्व - स्वसमवायिसमवेतत्वोभयसंस|र्गः व्यापकतावच्छेदकसम्बन्धश्च स्वरूपसंसर्गः । एतदनभ्युपगमे तु स्वसमवायिसमवेतत्वसम्बन्धेन कपालगन्धवति घटेऽपि गन्धप्रागभावविरहः स्यादित्याशङ्कायां कल्पान्तरमावेदयति अस्तु वेति । समवायेन चित्रं प्रति चित्रेतररूपाभावस्प स्वरूपसम्बन्धन कार्यसहभावेन हेतुतेत्यत्राऽनुषज्यतं । एतेन नीलकपालव्यारब्धे घंटे नीलोत्पादक्षणे चित्ररूपोत्पनिप्रसङ्गः परास्त:, नीलोत्पादक्षणे घंटे चित्रेतररूपाभावस्य चित्रकारणस्य विरहात् । समवायेन चित्रेतरत् रूपं प्रति च स्वरूपसम्बन्धेन चित्राभावस्य कार्यसहभाचेन हेतुता स्वीक्रियते । अनेन नीलपीत कपालद्वपारधे घंटे चित्रोत्पनिक्ष नीलाद्युत्पत्तिप्रसङ्गः प्रतिक्षिप्तः, चित्रात्पादसमये घंटे चित्राभावस्य नीलादिकारणस्य विरहात् । तदेवाह अतः = दर्शितकार्यकारणभावद्वयाभ्युपगमात् नातिप्रसङ्गः = न चित्रोत्पतिक्षणं नीलाद्युत्पत्तिलक्षणां नीलाद्युत्पत्तिक्षणे चित्रोत्पत्तिलक्षणोऽतिप्रसङ्ग इत्यर्थः । यथा तद्भावना सा त्वनुपदमेवीका कार्यसहभावेन दर्शितकार्यकारणभावानुपगमे तु नीलोत्पादक्षणं चित्रोत्पादप्रसङ्गः स्यादवति सहभावेन तथात्वीति: चित्रं प्रति रूपत्वेन' कारणतावादिमते युक्तवति भावः । ऋजवस्तु समवायेन चित्रं प्रति स्वसमवायिसमवेतत्वसम्बन्धन रूपस्य स्वाश्रयसमवेतत्वसम्बन्धेन च चित्रेतराभावस्य प्रागभाव एवं प्रध्वंस आदि की कल्पना का गौरव अपरिहार्य होने से यह पक्ष मान्य नहीं किया जा सकता' - ऐसा अपर विद्वानों का वक्तव्य है । ॐ चित्ररूप के प्रति रूपत्वेन कारणता रामभद्र सार्वभौम C चित्र० इति । रामभद्र सार्वभौम का यह मन्तव्य है कि 'समवाय सम्बन्ध मे चित्र रूप के प्रति स्वसमवायिसमवेतत्व सम्बन्ध से रूपत्वेन रूपसामान्य ही कारण है । ऐसा कार्य कारणभाव मानने पर नीलकपाललय से आरम्भ घट में नील रूप के साथ चित्र रूप की उत्पत्ति की आशंका नहीं की जा सकती, क्योंकि उस घट में चित्र रूप के कारण रूपसामान्य की उपस्थिति होने पर भी चित्र रूप के दूसरे कारण चित्ररूपप्रागभाव का अभाव होने से वह उत्पन्न नहीं हो सकता । अथवा यह भी कहा जा सकता है कि समदाय सम्बन्ध से चित्र रूप के प्रति स्वरूपसंबन्ध से चित्रेतरूपाभाव भी कार्य सहभावेन कारण है और चित्रेतर रूप के प्रति चित्राभाव कार्यसहभावेन कारण है । अतएव नीलकपालद्रयारब्ध घट में चित्रोत्पत्ति की आपत्ति - क्षण में चित्रतर नील रूप विद्यमान होने से चित्रेतररूपाभावस्वरूप चित्र रूपकारण के अभाव से चित्रोत्पत्ति का अतिप्रसंग हो नहीं सकता । इसी तरह नीलपीत कपालद्वयारब्ध घट में नीलोत्पत्ति की आपत्ति - भ्रूण में चित्र रूप विद्यमान होने से

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