Book Title: Swatantrata ke Sutra Mokshshastra Tattvartha Sutra
Author(s): Kanaknandi Acharya
Publisher: Dharmdarshan Vigyan Shodh Prakashan
View full book text
________________
स्थापना निक्षेप का लक्षण . सोऽयमित्यक्षकाष्ठादेः सम्बन्धेनान्यवस्तुनि।
यद्वयवस्थापनामात्रं स्थापना साभिधीयते॥(11) पांसा तथा काष्ठ आदि के सम्बन्ध से 'यह वह है' इस प्रकार अन्य वस्तु में जो किसी अन्य वस्तु की व्यवस्था की जाती है वह ‘स्थापना निक्षेप' कहलाता है।
किसी में किसी अन्य की कल्पना करने को स्थापना कहते हैं। इसके . दो भेद है- तदाकार स्थापना और (2) अतदाकार स्थापना। जैसा आकार है उसमें उसी आकार वाले की कल्पना करना तदाकार स्थापना है, जैसेपार्श्वनाथ की प्रतिमा में पार्श्वनाथ भगवान की स्थापना करना और भिन्न आकार वाले में भिन्न आकार वाले की कल्पना करना अतदाकार स्थापना है, जैसेशतरंज की गोटों में बजीर, बादशाह आदि की कल्पना करना।
. द्रव्य निक्षेप का लक्षण भाविनः परिणामस्य यत्प्राप्तिं प्रति कस्यचित्।
स्याद्गृहीताभिमुख्यं हि तद् द्रव्यं ब्रुवते जिनाः ॥(12) किसी द्रव्य को, आगे होने वाली पर्याय की अपेक्षा वर्तमान में ग्रहण करना द्रव्यनिक्षेप है, ऐसा जिनेन्द्रदेव कहते हैं।
द्रव्य की जो पर्याय पहले हो चुकी हैं अथवा आगे होने वाली है उसकी अपेक्षा द्रव्य का ग्रहण करना अर्थात् उसे भूतपर्याय रूप अथवा भविष्यत् पर्यायरूप वर्तमान में ग्रहण करना सो द्रव्य निक्षेप है।
भावनिक्षेप का लक्षण वर्तमानेन यत्नेन पर्यायेणोपलक्षितम्। .
द्रव्यं भवति भावं तं वदन्ति जिनपुङ्गवाः ।।(13)
वर्तमान पर्याय से उपलक्षित द्रव्य को जिनेन्द्र भगवान भाव निक्षेप कहते हैं। जो पदार्थ वर्तमान में जिस पर्याय रूप हैं, उसे उसी प्रकार कहना भाव निक्षेप हैं।
54
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org