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शतावधान आदिके प्रयोग
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कर सकते थे । और उसमें विशेषता यह थी कि वे इन सब कामोंके पूर्ण होनेतक, बिना लिखे अथवा बिना फिरसे पूछे ही इन सब कामोंको करते जाते थे। उस समय पायोनियर, इन्डियन स्पैक्टेटर, टाइम्स आफ इंडिया, मुंबई समाचार आदि पोंने राजचन्द्रजीके इन प्रयोगोंकी मुक्तकण्ठसे प्रशंसा की थी। राजचन्द्रजीकी स्पर्शन इन्द्रियकी शक्ति भी बहुत विलक्षण थी। उक्त सभामें इन्हें भिन्न भिन्न आकारकी बारह पुस्तकें दी गई और उन पुस्तकों के नाम उन्हें पढ़कर सुना दिये । राजचन्द्रजीकी आखापर पट्टी बाँध दी गई। उन्होंने हासि टटोलकर उन सब पुस्तकोंके नाम बता दिये । कहते हैं कि उस समयके बम्बई हाईकोर्टके चीफ जस्टिस सर चार्ल्स सारजंटने राजचन्द्रजीको इन अवधानोंके प्रयोगोंको विलायत चलकर वहाँ दिखानेकी इच्छा प्रकट की थी, पर राजचन्द्रजीने इसे स्वीकार किया। भविष्यवक्ता
राजचन्द्रजी एक बहुत अच्छे भविष्यवक्ता भी थे। वे वर्षफलं जन्मकुंडली आदि देखकर भविष्यका सूचन करते थे। अहमदाबादके एक मुमुक्ष सजन (श्रीजूठाभाई ) के मरणको राजचन्द्रजीने सवादो मास पहिले ही सूचित कर दिया था । इसके अतिरिक्त उनके भविष्यज्ञानके संबंध और भी बहुतसी किंवदन्तियां सुनी जाती हैं। कहते हैं कि एकबार कोई जौहरी उनके पास जवाहरात बेचने आया । राजचन्द्रजीने उसके जवाहरात खरीद लिये । पर उन्हें भविष्यज्ञानसे मालूम हुआ कि कल जवाहरातका भाव चढ़ जानेवाला है । इससे राजचन्द्रजीके मनको बहुत लगा, और उन्होंने उस जौहरीको बुलाकर उसके जवाहरात उसे वापिस कर दिये। अगले दिन वही हुआ जोराजचन्द्रजीने कहा था। इसपर वह जौहरी उनका बहुत भक्त हो गया।
राजचन्द्र दूसरेके मनकी बात भी जान लेते थे। कहा जाता है कि एकबार सौभागभाई (राजचन्द्रजीके प्रसिद्ध सत्संगी) को आते देखकर राजचन्द्रजीने उनके मनकी बातको एक कागजपर लिखकर रख लिया, और सौभागभाईको उसे बँचवाया। सौभागभाई इस बातसे बहुत आश्चर्यचकित हुए और उसी समयस राजचन्द्रजीकी ओर उनका आकर्षण उत्तरोत्तर बढ़ता गया। कविराज
राजचन्द्रजी कवि अथवा कविराजके नामसे भी प्रसिद्ध थे। उन्होंने आठ वर्षकी अवस्थामें कविता लिखी थी। कहा जाता है कि इस उमरमें उन्होंने पाँच हजार कडियाँ लिखी हैं; और नौ बरसकी अवस्था रामायण और महाभारत पद्य रचे हैं। राजचन्द्रजीके काव्योंको देखनेसे मालूम होता है कि यद्यपि वे कोई महान् कवि तो न थे, किन्तु उनमें अपने विचारोंको काव्यम अभिव्यक्त करनेकी महान् प्रतिभा थी । यद्यपि राजचन्द्रजीने 'स्त्रीनीतिबोध' 'स्वदेशीओने विनंति ''श्रीमंतजनोन शिखामण' 'हुन्नरकलावधारवाविष, ' 'आर्यप्रजानी पडती' आदि सामाजिक और देशोन्नतिविषयक भी बहुतसे काव्य लिखे हैं, परन्तु उनकी कविता अखा आदि संत कवियों की तरह विशेषकर आत्मशान
१ राजचन्द्रजीके अवधानोंके विषयमें विशेष जाननेके लिये देखो 'साक्षात् सरस्वति किंवा श्रीमद् रायचन्द्रनो २९ मां वर्ष सुधीनो टुंक वृत्तांत' अहमदाबाद १९११.
२ प्रस्तुत ग्रंथ पत्रांक १०१ में इस संबंध राजचन्द्र वैशाख सुदी ३, १९४६ को बम्बईसे लिखते हैं-" इस उपाधि पड़नेके बाद यदि मेरा लिंगदेहजन्यज्ञान-दर्शन वैसा ही रहा होयथार्थ ही रहा हो-तो जूठाभाई आषाढ सुदी ९ को गुरुवारकी रातमें समाधिशीत होकर इस क्षणिक जीवनका त्याग करके चले जायेगे-ऐसा वह ज्ञान सूचित करता है।" तत्पश्चात् आषाद सुदी १०, १९४६ को उसी पत्रमें वे निम्न प्रकारसे लिखते हैं-" उपाधिके कारण लिंगदेहजन्यशानमें योषा बहुत फेरफार हुआ मालूम दिया । पवित्रात्मा जूठाभाईके उपरोक्त तिथिमै परन्तु दिनमें स्वर्गवासी होनेकी आज खबर मिली है."
३.श्रीयुत दामजी केशवजीके संग्रहमें भीमद्के संपर्कमे आये हुए एक मुमुक्षुके लिखे हुए राजचन्द्रजीके वृत्तांतके आधारसे.