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संख्या १]
कोणार्क की यात्रा
[ मन्दिर के रथ का चक्र जिस पर समूचा मन्दिर स्थित है । नक्काशी का सर्वोत्कृष्ट नमूना । ]
चक्रों का घेरा १४ फ़ट है। इसमें नाना प्रकार की चित्रकारी की गई थी। भोगशाला २४ पहियों के सात अश्वों पर स्थित है । मन्दिर के चारों तरफ़ प्राचीर भी है। इसका घेरा ५४० फ़ुट है । यह सब ११ एकड़ भूमि में स्थित है ।
पुरी, भुवनेश्वर और कोणार्क - इन तीनों स्थानों के मन्दिर अपनी कारीगरी के लिए भारत प्रसिद्ध हैं । इन मन्दिरों में तीन बातों की विशेषता दिखाई देती है । पहली है उनकी शिल्पकला, दूसरी है उनकी विशालता और तीसरी है उनकी गंभीर आध्यात्मिकता । कोणार्क में ये तीनों बातें प्रचुर परिमाण में देखने को मिलती हैं। जिन शिल्पियों ने मनोनिग्रह पूर्वक अपनी कारीगरी मूर्तियों की रचना में प्रदर्शित की है उनकी वह कारीगरी इस क्षत-विक्षत अवस्था में भी भले प्रकार दिखाई देती है। टूट जाने पर भी कोणार्क-मन्दिर मनोमुग्धकारी है । उसकी चित्रकला प्रति विस्मयजनक है । मन्दिर के निर्माण में बड़ी बड़ी शिलायें काम में लाई गई हैं । मन्दिर के पूर्व-द्वार पर पत्थर की एक बड़ी पटिया पर नवग्रहों की मूर्तियाँ उत्कीर्ण की गई थीं । मन्दिर के टूट जाने से वह पटिया गिर गई है। वह वहाँ से उठाकर पास के अजायबघर में रख दी गई है । जिस पटिया में विस्मयजनक सुन्दर सुडौल मूर्तियाँ बनी हुई
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हैं वह २० फ़ुट लम्बी, ५ फ़ुट चौड़ी और ४ फ़ुट मोटी ७४० मन कहा जाता है। नवग्रहों
है। उसका वज़न की मूर्तियों की इस पटिया का कलकत्ते के म्यूज़ियम में ले जाने का बड़ा प्रयत्न किया गया था । मन्दिर से समुद्र तक ट्रामवे लाइन लगाई गई थी। इस काम में सरकार की ओर से काफ़ी अर्थ व्यय किया गया । पर नवग्रह की मूर्तियों की पटिया टस से मस नहीं हुई। उसके तृतीयांश को तोड़ कर ले जाने का उपाय किया गया, पर वह भी व्यर्थ हुआ । तब से मन्दिर से कुछ दूर पर वह छोड़ दिया गया । चन्द्रभागा के मार्ग में एक झाड़ी के नीचे बालू में वह पटिया दबी पड़ी है। सब मूर्तियाँ वहीं पास के मन्दिर में सुरक्षित रक्खी हैं।
बड़े मन्दिर के ऊपर एक गजसिंह की मूर्ति थी। वह आज वेढ़ा में पड़ी है । उसका वज़न १,३०० मन के क़रीब होगा । यह विशाल मूर्ति मन्दिर के ऊपर १६० फुट की ऊँचाई पर रक्खी गई थी। बड़े मन्दिर के शिखर में जो पत्थर का कलश था, वह एक पत्थर का बना हुआ था और उसका वज़न ५,६०० मन था । यह विशाल कलश २०० फ़ुट की ऊँचाई पर रक्खा गया था । श्राजकल के यांत्रिक युग में नवग्रह की पटियों का तृतीयांश ले जाना संभव नहीं हो सका । किन्तु उत्कल के शिल्पियों ने आज से ६०० वर्ष पूर्व न मालूम किस शक्ति से उन सबको उठाकर उतने ऊँचे चढ़ाया था तथा वे पत्थरों को
[लियाकिया ग्राम में यात्री साथी जलपान कर रहे हैं ।]
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