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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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करनी ए षट् अनायतन अरु देव गुरु धर्म इन विषै मूढदृष्टि ऐसे पच्चीस दोष २५ । इन करि रहित ऐसे निर्मल दर्शन करि संजुक्त तीन प्रकारके जघन्य मध्यम उत्कृष्ट संजमी जाननै । सो पाक्षिक विषै अरु साधक विषै ग्यारह भेद नाहीं है । नैष्ठिक विषै ही है । सो पाक्षिकको तौ पांच उदम्बर १ पीपर २ वर ३ उंबर ४ कळंबर ५ पाकर इन पांचका फल अरु मद्य मधु मास सहित ये तीन मकार पाका प्रत्यक्ष तौ त्याग है अरु आठ मूल गुन विषै अतीचार लागै है सो कहिये है । मास विषै तौ चामके संजोगका घृत तेल हींग, जल अरु रात्रीका भोजन, अरु विदल अरु दो घड़ीका छान्या जल अरु वीधा अन्न इत्यादि मर्यादा रहित वस्तु, ता विषे त्रस जीबाकी वा निगोदकी उत्पत्ति है ताका भक्षनका दोष लागै है । अरु प्रत्यक्ष पांच उदम्बर तीन मकार भक्षन नाहीं करै है । अरु सात व्यसन भी नाहीं सेवै है । अरु अनेक प्रकारकी आखड़ी संजम पालै है । अरु धर्मका जाकै विशेष पक्ष है । ऐसा पाक्षिक विशेष जघन्य संयमी जानना । सो ऐ प्रथम प्रतिमाका भी धारक नाहीं है । अरु प्रथम प्रतिमा आदि संयमका धारवा का उद्यमी हुआ है । तातै याका दूना नाम प्रारध्व है। नैष्ठिकका ग्यारा भेद । दर्शन १ व्रत २ सामायिक ३ प्रोषध ४ सचित्त त्याग ५ रात्रिमुक्ति वा दिन विषै कुशील त्याग ६ ब्रह्मचर्य ७ आरम्भत्याग < परिग्रह त्याग ९ अनुमति त्याग १ ० उद्दिष्ट त्याग ११ ऐसेई ग्यारह मेद विषै असमका हीनपनौ जाननां । तातें याका दूजा नाम घटमारग है । अरु तीजा साधक ताका दूसरा नाम निपुन है। भावार्थ पाक्षिक तौ संयम विषै उद्यमी हुवा है करवा नहीं लागा