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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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इकवीस सर्व घातिया छवीस देसघातियाकी प्रकृति षेत्रविपाकी चार भवविपाकी चार वहत्तर जीवविपाकी उनसठ पुद्गलविपाकी प्रकृति दस कर्नचूलका नव प्रस्तचूलका पाच प्रकार भागाहार प्रति प्रदेस संस्थित अनुभाग बंध इत्यादिक इनका भिन्न भिन्न सरूप तुमही प्रगट किया अरु उपदेस देते भये । बहुरि प्रथमानुयोग करनानुयोग चरनानुयोग द्रव्यानुयोग चार सुकथा चार विकथा तीनसे त्रेसठ कुवाद वा कुवादके धारक जोतिक वैद्यक मंत्र यंत्र पांच वा आठ प्रकार निमित्तज्ञान, न्याय नीत छंद व्याकन गनित अलंकार आगम अध्यात्म शास्त्र निरूपन भी तुमही करते भये चौदे धारा तेईस वर्गना जोतिगी व्यंतर भवनवासी कल्पवासी सप्तनर्क तिनका पूर्वला पराक्रम सुखदुखका विशेष निरूपन तुमही करते भये । अढाईद्वीपके छेत्र कुलाचल द्रह कुंड नदी पर्वत नव क्षेत्रकी मर्यादा आर्य अनार्य कर्मभूमि भोगभूमि कुभोगभूमिकी रचना आचरन अवससर्पनी उत्सर्पनी कालकी फिरन पल्य सागर आदि आठ असंख्यात संख्यात अनन्तके इकीस भेद पंच प्रकार परवर्तन इनका निरूपन भी तुमही कहते भये । मनुष्यक्षेत्र त्रसनाड़ी सिद्धक्षेत्र लोक अलोकके भेद तुमही कहते भये । सो हे भगवान हे जिनेन्द देव हे अरहंत देव हे त्रैलोक गुरु तुमारा ज्ञान कैसा है ऐता ज्ञान तुमारे एक समय में कैसे भया मेरे या बातका आश्चर्य तुमारे ज्ञानके अतिशयकी महमा हनार जिह्वा कर न कही जाय हम तो एक ज्ञेयने ऐके काल तुच्छ वस्तु ने नीउ जान सके ताते हे दया मूरत आप सारषे हमकू भी कीजिये मेरे ज्ञानकी बहुत चाह है । तुम परम दयालु हो मनवंक्षित वस्तूके देनहारे हो । तातें मेरा मनोरथ