________________
२४२
ज्ञानानन्द श्रावकाचार । maminnnnn.. प्रतीत करो । अरु साधर्मीनसू मित्रता करो अरु दान तप शील संयम इन सों अनुराग करो अरु स्वपर भेद विज्ञान ताका उपाय करो । अरु संसारी पुरुषासू प्रीत कहिये ममत्व भाव ताकू छोड़ो। अरु सरागी जीवाकी संगति छोड़ो अरु धर्मात्मा पुरुषांकी संगति करो यह लोक परलोकमें धर्मात्मा पुरुषांका संगति सुखदाई छ । ई लोकमें तो निराकुलता सुखकी प्राप्ति होय अरु जसकी प्राप्ति होय अरु परलोकमें स्वर्गादिकका सुखने पाइ मोक्षमें सिव रमनीको पति होय । निराकुल अतेन्द्री अनोपम बाधा रहित सास्वता अविनासी सुखने भोगवो जासू हे पुत्र थाने म्हारा वचन सत्य दीसे अरु यामें थांको भला होवो दीखे तो ये वचन अंगीकार करो अरु थाने म्हांको वचन झूठा दीखे अरु यामें थाको भलो होवो न दीसे तो म्हांको वचन मत मानो म्हारो तो थासू कछू बातको प्रयोजन नाहीं । दया बुद्धि कर थाने उपदेस दियो थो मानो तो मानो न मानो तो थांकी थें जानों । अब वे सम्यक दृष्टि पुरुष अपनी आयु तुच्छ जाने तब दान पुन्य करनो होय सो अपना हाथसू करें हैं । पाछे जेता पुरुषासों बतलावना होय तिनसू बतलाय निसल्ल होय है पाछे सर्व कर्मका नाता काजे पुरुष स्त्रीनिने आप निकटतें सीख देय अरु धर्मका ताका पुरुषाने आपना निकट राखे । अरु आपना आयु निःकपट पूरा हूवा जाने तो सर्व प्रकार परिग्रहका जीवन पर्यंत त्याग करे । अरु चार प्रकारके अहारका त्याग करे । सर्व घरका भार पुत्रनपै डालकर आप विशेषपने निशल्य होय वीतराग परनाम धरे, अरु आफ्ना आयुका नेम जाने पूरा होय या न होय यह संदेह रहे तो दोय