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ज्ञानानन्द श्रावकाचार।
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अरु पुरुष प्रमानका वचन प्रमान सो पुरुष प्रमान होय । तासों जो कोई सर्वज्ञ वीतराग है तेई पुरुष प्रमान करवो जोग्य है सो सर्वज्ञका वचनमें तो यो कहा है । जीव पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल ये छहों द्रव्य मिल त्रैलोक निपजा है ये छहों द्रव्य अनादि निधन हैं इनका कोई कर्ता नाहीं। इनका कोई कर्ता होता तो कर्ता किसका किया था अरु कोई कहे कर्ता तो अनादि निधन हैं तो ये छहों द्रव्य भी अनादि निधन हैं। तासों यह नेम ठहरा कोई पदार्थ किसी पदार्थका कर्ता नाहीं। सारा पदार्थ अपने अपने स्वभावका कर्ता है । अरु अपने अपने स्वभाव रूप स्वयमेव परनवे है । चैतन्य द्रव्य तो चैतन्य रूप ही पर नवे अरु अचेतन मूर्तीक द्रव्य अचेतन रूप ही परनवे मूर्तीक द्रव्य रूप हे। अमूर्तीक द्रव्य अमूर्तीक रूप रहे अरु जीव द्रव्य चैतन्य रूप रहे पुद्गल द्रव्य जड़ स्वभाव है । धर्म द्रव्यका चलने में सहकारी स्वभाव है अरु अधर्म द्रव्यका स्थिरकरन स्वभाव है जीव द्रव्य तो अनन्त प्रदेशी है पुद्गल अवगाहन स्वभाव है । कालद्रव्यका वर्तना स्वभाव है जीव द्रव्य तो अनन्त है पुद्गल तासू अनन्तानंत गुना है। अधर्म द्रव्य धर्म द्रव्य एकही है। आकास द्रव्य भी एकही है। अरु कालकी अनु भी अस्थित है । एक एक जीव द्रव्यांका प्रदेस तीन तीन लोक प्रमान है । पन संकोच विस्तार शक्ति है। तातें कर्मके निमित्तकर सदैव शरीरका आकार प्रमान है। एक केवल समुद्घात पूरन समयमें तीन लोक प्रमान होय अन्यकालमें नेम कर शरीरके प्रमान रहे । अवगाहना शक्ति कर तीन लोक प्रमान आत्माका आकार शरीरकी अवगाहना दिवं समाय जाय । अरू