Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Moolchand Manager
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalay

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Page 296
________________ जानगनन्द शावकाचार । A - - ~ - ~ ~ - ~ परमार्थका किछू कथन नाहीं । ऐसे शास्त्रका नाम कुशास्त्र है सो या शास्त्रकू सुन्यां अरु मान्यां जीवका नेमकर बुरा ही होय भला अंसमात्र भी नाहीं । ऐसे कुशास्त्रका स्वरूप कहा आगे कुगुरांका स्वरूप कहिये है । सो कैसे हैं कुगुरु कैईयक तो परिगृही ह कैईक महाक्रोधी हैं, कैईक महामानी हैं, कैईक महा मायाचारी हैं कैईक महां लोभी हैं, कई महां कामी परस्त्री भोगता सके नाहीं । बहुरि कैसे हैं कुगुरु कैई पंचानकर घना जीव बारें हैं। कैईक अनछाना पानी सूं सपड़ धर्म माने हैं । कैईक सारा शरीरकू खाक लगावें हैं । कैई जटा बधाबें हैं कैईक ठाड़ेस्वरी कहिये एक वा दोय हाथ ऊंचा किये हैं। कैईक अग्नि ऊपर ओंधा मुख किये हैं कैईक ग्रीष्म समय बालू रेतमें लोटे हैं कैई झझार कंथा पहरे हैं । कैईक बाघंवर धारें हैं । कैईक तिलक छापा धारे हैं। कैईक लंबी माला गले धारें कैईक खै का रंगा वस्त्र धारें । कईक स्वेत वस्त्र धारे हैं कैईक लाल वस्त्र धारें हैं । कैईक कटाटई धारें कई घासका कपड़ा धारें कईक मृगकी चाम धारें हैं । कैईक सिंहकी खाल धारे हैं। कैईक नग्न होय नाना प्रकारके वस्त्र धारें हैं । कैईक बनफल खाय हैं कैईक कूकरा आदि तियच राखे हैं। केईक मौन धारे हैं कैईक पवन चढ़ावें हैं कैईक जोतिस वैद्यक मंत्र यंत्र तंत्र करे हैं । केईक लोकनको दिखावनेके लिये ध्यान धारें हैं । कैईक आपकू महन्त माने हैं कैईक आपकू सिद्ध माने हैं । कैईक आरकू पुजाया चाहें कैईक राजादिकका पूज्या थका रानी होय हैं। कैईक न पूजे तापर क्रोध करे कैई कान फड़ाय भगुआ वस्त्र धारें कैईक मठ बंध है

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