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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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लाखों रुपैयाकी दौलत राखै हैं । अरु गुरुकी ठसक राखे हैं अरु भोला जीवोंने पगां पड़ाव हैं। इत्यादि नाना प्रकारके कूगुरु पाईये है । ताळू कहां ताई कहिये । और जुगति कहिये है। जो नंगा रहें कल्याण होय तो तिर्यंच सास्वता नंगा रहे हैं याका कल्यान क्यों न होसी जासों यथार्थ प्रतीत विना सर्व निर्फल है। जैसे एका विना बिंदी कामकी नाहीं और श्रीगुरु कहें हैं हे पुत्र तूने दोय बापको बेटो कहे तो दुख लगे। अरु दोय गुरु थारे कहे तो रंचमात्र भी दुख न लहै । सो माता पिता काइ स्वारथका सगा अरु बामुं एक पर्याय का सम्बन्ध ताकी तो प्यारे ऐसी ममत्व बुद्धि छै । अरु सुरु जाका सेवन जग मरनका दुख विलय जाय अरु स्वर्ग मोक्षकी प्राप्ति होय ताकी तुम्हारे या प्रतीत तासूं थारी परनति थाने दुखदाई नाहीं। तासूं गो तूं अपना हितने बांक्षे छै तो एक सर्वज्ञ वीतराग जो निनेश्वर देव ताका वचन अंगीकार कर अरु ताके बचनके अनुसार देव गुरू धर्मका श्रद्धान करि । इति कुदेवादिक वर्नन संपूर्ण भया । ॥ इति श्री पं० रायमल्लंजी कृत श्रीज्ञानानंद
श्रावकाचार ग्रन्थ संपूर्ण । शुभं मंगः ॥