Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Moolchand Manager
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalay

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Page 285
________________ २८० ज्ञानानन्द श्रावकाचार । - -~ ~ - ~ अरु याकू महा कामी मानें हैं सो कैसा कामी माने सोई कहिये है। महादेवका आधा शरीर स्त्रीका है आधा पुरुषका है। तासू याकानाम अगी कहिये ऐसो स्त्री सों रागी है । ताकू कहिये है रे भाई ऐसो दुष्ट सर्व सृष्टका मारवावाला अरु महां विरूप ऐसो पुरुष तारवा समर्थ कैसे होय । ताका नाम सुनता ही दुःख उपजै तो दर्सन कर कैसे सुख उपनै । यह जगतमें न्याय है जैसा कारन मिले तैसा ही कार्य निपजै ! सो उदाहरन कहिये है जैसे अग्निका संजोगसों दाह उपजे अरु जलका संजोगसों शीतल. ताही उपजें । अरु कुशीलवान स्त्रीका संजोगकर विकार भाव उपनै अरु शीलवान पुरुषका संजोगसू विकार भ व विलय जाय । अरु विषय कषाय कर प्रानका नास होय अरु अमृतका पीवांकर प्रानकी रक्षा होय । सिंह व्याघ्र हस्ती सर्प चोर आदिक संभोग कर भय ताप ही उपनै । अरु दय लु साधुननका संजोग कर निभै आनन्द ही उपनै । ऐसा नाहीं कि अग्निका संभोग कर तो शीतलता होय अरु जलका संजोग कर उस्नता होय । इत्यादिक जानना तासू हे भाई हम महादेवका असल निन स्वरूप जो है सो कहिये हैं सो ये महादेव कहिये रुद्र सो ये चौथा कालमें ज्ञारा (११) उपजे हैं। ताकी उत्पति कहिये है जो जैनका निर्ग्रन्थ गुरु अरु अर्जका ऐ दोऊ भ्रष्ट होय कुशील सेवें पाछे मुनि तो तत्क्षण ही प्रायश्चित्त लेय छे दोय स्थापन कर मुनिपदकू धर शुद्ध होय । अरु अर्जिकाकू गर्भ रहे । सो गर्भका निपात्त किया जाय नाहीं । ताते एक जायगा नव मास परत गर्भ बधाइ पीछे बालक भयो कोई स्त्री पुरुषने सोंप अर्जिका भी

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