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ज्ञानानन्द श्रावकाचार |
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२७९ . ताकूं कहिये है रे भाई तेरे भरम बुद्धि है । ये जोतिषी देवांका विमान अढ़ाई द्वीपमें मेरुसूं दूर गोलके क्षेत्रमें प्रदक्षनारूप भ्रमन करे है। तो कोईका विमान तो शीघ्र गमन करे है कोईका मंद गमन करे है । ताकी चालकूं देख अरु वाकी चालकूं देख अरु वाकी चालवित्रे कोईका जन्मादिक हुआ देख विशेष ज्ञानी अगाऊ होतव्यता कूं बतावें हैं । जाका उदाहरनकू बतावें हैं । उदाहरन कहिये सामुद्रक चिन्हकूं देख वाका होतव्य बतावे तथा सोन असोंन बतावे तैसे ही होतंव्यता बतावे, आठ प्रकार के निमित्त ज्ञान हैं। तामें एक जोतिष निमित्त ज्ञान है। ये आठ प्रकारके निमित्त ज्ञान कोई ईति भीति करवाने समर्थ तो नाहीं । जो समर्थ होय तो पूजिये जैसे हिरन स्याल कलसई इत्यादिकका सगुन अगाऊ होतव्यताका बतावनेका कारन है । सोयाकों पूजिये तो काई होतव्यता मिटे कदाच न मिटे त्यों ही जोतिषी देवांने पूजवां ताका अर्थ दान दियां ईत भीत भी असमात्र मिटे नाहीं । उलटा अज्ञान ताकर महा कर्मका बंध होय ताकर विशेष दुख होय दुखका देवांवालानो असुभकर्म है सो जिनेश्वरदेवकुं पूज्या शान्ति होई और उपाय त्रिकाल त्रिलोक में नाहीं अरु जीवके भरम बुद्धि ऐसी है । जैसे कोई पुरुषके महा ī दावहै अरु फेर अनि आदि उनताका उपाय करे । तो पुरुष कैसे शान्तिता पावै त्यों ही मिथ्यात करतो जीव आगे ही ग्रसित हुआ अरु फेर मिथ्यात ही कूं सेवे तो कैसे सुख पावै । अरु कैसे याका कार्य होय बहुरि कोई महादेव कूं अजोनी शंभू मरन तारन माने है । अरु ताकर जग का नास मानें हैं ।
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