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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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नदी जड़ अचेतन कैसे तारसी अरु गाय तिर्यंच कैसे तारसी अरू ताकी पूंछमें तेतीस कोड़ देव कैसे रहसी अरु पार्वतीके हाथी पुत्र कैसे भयो अरु समुद्र तो एकेन्द्री जल ताके चन्द्रमा पुत्र कैसे होसी । केईक हनूमानकों पवनका पुत्र बतावें सो एकेन्द्री पवनके पंचेन्द्री महापराक्रमी देव सारखा मनुष्य कैसे होसी यह हनूमान ही पवनंजयनामा मंडलेश्वर राना ताको पुत्र है । या बात संभवे है और बाल सुग्रीव हनूमानादि बांदर वंसी महापराक्रमी विद्याधर राना हैं । सो इनको पसु रूप बनावे सो इनके असी हजार विद्या हैं । ताकर अनेक अचरजकारी चेष्टा करें कैईक या कहें ये तो बांदर हैं सो ऐसा विचारें नाहीं कि तिर्यंचके ऐसा बल पराक्रम कैस होसी अरु संग्राममें लड़वाका वा रामचन्द्रादि रानान मूं बतलावाका ज्ञान कैसे होसी अरु मनुष्यन कैसी भाषा कैसे बोलसी अरु ऐसे ही रावनादि राक्षकवंसी विद्याधरोंका राजा अरु ताकी राक्षसी विद्या आदि हजारों विद्या ताकर बहु रूप बनाय नाना भांतिकी क्रीड़ा करे ताकू कहें ये राक्षस हैं अरु कोई या कहे कनककी लंका सो हनुमानने अग्नि सुं जारी ऐसा विचारे नाहीं सुवर्ण की छी तो अग्नि सो कैसे जरी अरु कोइ या कहे है कि. वासुकी राजा धरती फनपे धरै है अरु यह धरती सदा अचल है। अरु सुमेर भी अचल है परन्तु कृष्नजी सुमेरकू राई कीनी अरु वासुकी राजाको नोतो कियो अरु समुद्र मथो तामें सूं लक्ष्मीको स्तंभ मनि पारजातक कहिये फूल सुरा कहिये मदरा धनंतर वैद्य चन्द्रमा कामधेनु गाय ऐरापति हाथी रंभा कहिये देवांगना सात मुखको ओडो अमृत धनुष पंचायन संख विष ये चौदा रत्न काढ़या सो