Book Title: Gyananand Shravakachar
Author(s): Moolchand Manager
Publisher: Sadbodh Ratnakar Karyalay

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Page 276
________________ ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २७१ त.कू कहिये है । रे भाई छिन छिनमें जीव उपजे है तो कालकी बात आजकूने जानी । अरु में फलाना छा सो मर देव हू छो ऐसा कूने कहा बहुरि कोई ऐसे कहे प्रथ्वी अप वायु तेन आकास ये पांच तत्व मिल एक चैतन्य शक्ति उपज वे है । जैसे हल्दी साजी मिल लाल रंग उपजावे । अथवा नील हरदी मिल हरा रंग उपजावे ताकू कहिये है रे भाई प्रथ्वी आदि पांचों तत्व तें कहा सो तो यह अचेतन द्रव्य है सोया कर अचेतन शक्ति उपजे है। यह नेम है । सो तो प्रत्यक्ष आखां देखिये है अरु नाना प्रकारके मंत्र जंत्र तंत्र आदिके धारक जे किप्त ही पुद्गल द्रव्यको नाना प्रकार परणवावे हैं, ऐसा आज पहिली कोई देख्यो नाहीं, फलानों देव विद्याधर मंत्र औषधि पंच आदि पुद्गलको चैतन्य रूप परनवायो सो तो देखो नाहीं अरु आकाश अमूर्तीक अरु प्रथ्वी आदि चारों तत्व मूर्तीक पदार्थ कैसे निपजै । ऐसे होय तो आकाश पुद्गलका तो नास होय अरु आकाश पुद्गलकी जांयगां सर्व चैतन्य द्रव्य होय जाय सो तो देखी नांही चैतन्य पुद्गल सर्व न्यारा २ पदार्थ आख्यां देखिये है । ताळू झूठा कैसे मानिये । बहुरि कोई ऐसे कहे हैं एक ब्रह्म सर्व व्यापी है। जलमें थलमें सर्व घट पटादि में एक ब्रह्मकी सत्ता है। ताकू कहिये है रे भाई ऐसा होय तो बड़ा दोष उपजै कई पदार्थचैतन्य देखिये है कई पदार्थ अचैतन्य हैं। सो एक पदार्थ चे तन अचेतन कैसे होय अरु चेतन पदार्थ भी नाना प्रकारके देखिये है अरु अचेतन पदार्थ भी बहुधा देखिये है। सो सबनकू एक कैसे मानिये बहुरि जो एक ही पदार्थ होय ताकू कहिये कि फलानो नरक गयो, पलानो स्वर्ग गयो, फलानो

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