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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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ऐसा कार्य कैसे बने । कोई कहेगा जैसा रानाके जुदे जुदे चाकरन कर अनेक प्रकारका कार्य कर लेय अरु राजा सुखी भया महलमें तष्टें है । तैसे ही परमेश्वरके अनेक चाकर हैं । ते सृष्टिकू उपनावें हैं विनासें हैं । परमेश्वर सुखसू वैकुंठमें तिष्टे है तारूं कहिये है। रे भाई ऐसे संभवे नाहीं जाका चाकर कर्ता भया तो परमेश्वरको कर्ता काहेको कहिये अरु परमेश्वर वे कुटुम्बमें ही रास्ता तिष्टे है। तो ऐसा कैसे कहिये परमेश्वर मक्ष कक्ष आदि बैरियोंका मारवां वास्ते वा भक्तन की -सहाई वास्ते चौबीस अवतार धरया अरु घना भक्तिको खेत आन पनायो अरु नरसिंह भक्ति आय दर्सन दियो अरु द्रौपतीको चीर बढ़ायो अरु टीटईके अंडाका सहाई कर अरु हस्तीने कीचमेंसो निकालो । अरु भी नीका उसेया फल खाया इत्यादि कार्य ऐठे आया विना कूने किया सो ऐमा विरुद्ध वचन यहां संभवे नाहीं बहरि कोई यह कहसी परमेश्वरकी ऐसी ही लीला छे ताको कहिये है। रे भाई लीला तो सो कहिये जामें महानन्द उपजे सो सर्व जन... प्रिय लागे परमेश्वरकू तो ऐसा चाहिये जो सर्व हीका भला करै । ऐसा नाहीं के वाहीकू तो पैदा करे वाहीकू नास करे यह परमेश्वरपना कैसा सामान्य पुरुष भी ऐसा कार्य न विचारे बहुरि कोई सर्व जगतकू शून्य कहिये नाप्त माने है । ताकू कहिये है रे भाई तू सर्व जगत• नास माने तो तूं नास्तिका कहनहारा कोई वस्तु है । ऐसे ही अनन्त जीव अनन्त पुद्गलं आदि प्रमान कर वस्तु प्रतक्ष देखिये है ताकू नास्ति कैसे कहिये । बहुरि कोई ऐसे कहें हैं जीव तो छिन छिनमें उपनै अरु छिन छिनमें विनसे है।