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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
कर्ता माने हैं । केई परमब्रह्मकुं कर्ता माने हैं इत्यादि कर्ता माने ताको कहिये है । जैसा येही तीन लोकका कर्ता है तो एक नैं तीन लोकका कर्ता कैसे कहा अरु खुदा ही तीन लोकको कर्ता है तो हिन्दुयोंने क्यों किया अरु बिस्नु आदि ही तीन लोकका कर्ता है तो तुरक किसने किया हिन्दू तो खुदाकी निन्दा करे अरु तुरक बिस्नुकी निन्दा करे कोई कहे करती बार खबर न करी त कू कहिये है । करती बखत खबर न रही तो परमेश्वर क्यों कर ठहराया जाके एता ही भी ज्ञान नाहीं। अरु तीन लोकका कर्ता ही तो कोई दुःखी कोई सुखी कोई नर कोई तिर्यच कोई नारक कोई देव ऐसा नाना प्रकारका जीव पैदा क्यों किया तैसा तैसा ही सुख दुःख फल देवांके अनुसार पैदा किया तो यामें परमेश्वरका करतव्य कैसे रहा कर्महीका करतव्य रहा सो केतो परमेश्वरहीका करतव्य कहो के कर्मका ही करतव्य कहो के दोईका भेला ही करतव्य कहो । हमारी मां अरु बांझ ऐसे तो बने नाहीं । बहुरि जीव तो पहिली न होता शुभाशुभ कर्मकू न बांधा यामें भी कर्ताका अभाव भया बहुरि जगतमें दोई चार कार्य करिये । तो भी आकुलताका सद्भाव विशेष होय अरु आकुलता है तहां तहां बड़ा दुःख है । अरु जा परमेश्वरकू तीन लोकमें अनन्त जीव व अनन्त पुद्गलादि पदार्थ ताका कर्ता होता अरु अनेक प्रकार जुदा जुदा परनमता अरु ताकी जुदी जुदी याद राखनी अरु जुदा जुदा सुख दुःख देना अपना संकलेश परनाम करना,. ऐसा कर्ता होय ताका दुःखकी काई पूंछनी सर्वोत्कृष्ट दुःख ताहीके बाटें आया तो परमेश्वरपना काहेका रहा बहुरि एक पुरुषसू