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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
है। कि मानूं प्रतिबिम्बित है । कि मानूं पाषानके उकीर काढ़े है । कि मानूं चित्रामकी चितेरें है कि मानूं स्वभावमें आन प्रवेश किया है कि माने स्वभावमें आन झलके है कि मानूं अभिन्न रूप ही प्रतिभासे है ऐसा स्वभावने लियां श्री सिद्ध भगवान आपना स्वच्छ निर्मल स्वभावरूप परनवे है। बहुरि कैसे हैं सिद्ध महाराज सांतीक रस कर असंख्यात प्रदेश भरे हैं । अरु ज्ञानरस कर आहलादित हैं । अरु सुद्ध अमृत कर श्रवें हैं प्रदेस जाका व अखंड धारा प्रभाव वहे है । बहुरि कैसे हैं चंद्रमाका विमानमें सूं अमृत अवे है । अरु औरांकू अहलादित बढ़ावे अरु आताप दूर करे अरु मन प्रफुल्ल करे है त्यों ही सिद्ध महाराज आप तो ज्ञानामृत पीवें आचरे अरु औरांने आनन्दकारी ताको नाम लेत ही वा ध्यान करता ही भवताप विलय जाय अरु परनाम सांत होय आपा परकी शुद्धता होय अरु ज्ञानामृतनें पीवे अरु निजस्वरूपकी प्राप्ति होय सो ऐसा सिद्ध भगवानके हमारा नमस्कार होहु । अरु सिद्ध भगवान जयवंत होहु अरु हमें संसार समुद्रतें काढ़ो । अरु म्हांकी संसारमें पड़वातें रक्षा करो अरु म्हारा अष्ट कर्मने हरो अरु हमारा कल्यानका कर्ता होहु । अरु म्हाने मोक्ष लक्ष्मीकी प्राप्ति करो अरु हमारे हृदय में निरंतर वसो । अरु म्हांने आप सारखो करो बहुरि कैसा है सिद्ध भगवान जाके जन्म मरन नाहीं । जाके शरीर नाही ज्ञान वा जीवका प्रदेश है । बहुरि कैसे हैं सिद्ध भगवान अस्तित्व वस्तुत्व वा प्रमेयत्व व अमेयत्व प्रदेसवत्व अगुरुलघुत्व चैतन्यत्व अमूर्तिक निरंजन निराकार भोगतृत्व अभोगतृत्व द्रव्यत्व याने आदि देय,