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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । २५७ पर्यायका स्वरूप ज्यों ज्यों२ ज्ञान होइ त्यों जानवो कार्यकारी है। परन्तु मुख्यपने या दोयका तो जानपना तो अवश्य चाहिये। ऐसा लक्षन जानना बहुरि विशेष गुन ऐसें जानना सो एक गुनमें अनन्त गुन हैं । अरु अनन्त गुनमें एक है । मुन गुनसो मिले नाहीं। अरु सब गुनमें मिल्या है जैसे सोवर्नमें पीला च कनाने आद देय अनेक गुन हैं । सो क्षेत्रकी अपेक्षा तो सर्व गुनामें तो पीला गुन पाइये । अरु पीला गुनमें क्षेत्रकी अपेक्षा सर्व गुन पाइये । अरु क्षेत्रकी अपेक्षा गुनसो गुन मिल रहा है। अरु सर्वका प्रदेश एक ही है । अरु स्वभावकी अपेक्षा सर्व न्यारे न्यारे हैं । सो पीलाका स्वभाव और ही है अरु चीकनाका स्वभाव और ही है। सो ऐसे आत्मामें जानना वा ऐसा द्रव्यामें भी जानना वा अनेक प्रकार अर्थ पर्याय वा विनन पर्यायका स्वरूप यथार्थ शास्त्रोंके अनुसार जानना उचित है । अबसेस जानपना कर सम्यक निर्मल होता जाय है । बहुरि या जीवके सुखकी बधवारी वा घरबारी दोय प्रकार होय है सोई कहिये है । जेता ज्ञान है तेता सुख ही है । सो ज्ञानावरनादिका उदय होते तो सुख दुख दोन्यो का नास होय अरु ज्ञानावरनादिकका तो क्षयोपशम होय अरु मोह कर्मका उदय होय तब या जीवकें दुख विशेष उत्पन्न होय सो सुख तो आत्माके निज गुन कर्म उदय विना है । अरु दुख कर्मीका निमित्तकर होय है सो जीवसक्ति कर्म उदय दब गई अरु दुखसक्ति कर्मका उदय ते प्रगट होय है तातै वस्तुका द्रव्यत्व स्वभाव है । बहुरि फेर शिप्य प्रश्न करे है । हे स्वामी हे प्रभू तेरे ताई