________________
ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
है अरु नाना प्रकार दुद्धर दुद्धर तपश्चरन करे है । अरु अठाईस मूल गुन पाले है वाईस परीसह सहे हैं । अरु छयालीस दोष टार आहार ले है अरु अंसमात्र कषाय न करे । सर्व जीवाके रक्षपाल होय जगतमें प्रवत अरु नाना प्रकारके शील संयमादि गुन कर भूषित है । अरु नदी पर्वत गुफा मसान निर्जन सूका बन तामें जाय ध्यान करें । अरु जाके एक मोक्षहीकी अभिलाषा अरु संसार सों भयभीत एक मोक्षहीके अर्थ ही रानविभूतिने छोड़ दिक्षा धरी है । ऐसे होते संते भी मोक्ष कदाच पावे नाहीं । करना ही पावे याके महां सूक्ष्म केवलज्ञान गम्य ऐसा मिथ्यातका अंस लगा है । तातै मोक्ष पावे नाहीं झूठा ही भ्रम वुद्धिकर मान्या तो गर्न सरे नाहीं। कौन दृष्टान्त जैसे बाल अज्ञान माटीका हाथी घोड़ा बैल बनावे अरु वाको सांचा मानकर वासू बहुत प्रीत करे अरुंवा सामग्रीकू पाय बहुत खुमी होय पाछे वाकों कोई फोड़े ले जाय तो बहुत सोक करे रोवे छाती माथा आदि कूटे वाके ऐसा ज्ञान नाहीं कि ये तो झूठा विकल्प हैं । त्यों ही यह अज्ञानी पुरुष सोई हुवा बालक सो कुदेवादिकने तारन तरन जान सेवे है । ऐसा ज्ञान नाहीं के ऐही तिरवाने असमर्थ तो हमें कैसे तारसी । बहुरि और दृष्टान्त कहिये है। कोई पुरुष कांच खडने पाइवा विषे चिन्तामन रत्नकी बुद्धि करै है अरु या जानें यह चिन्तामन रतन है । सो मोनें बहुत सुखकारी होसी यइ मोने मनवांछित फल देसी सो भ्रम बुद्धि कर कांचने चिन्तामन मानो ता कर काई हूवो अरु काई वेसू मनवांछित फलकी सिद्ध हुई कदाचि न होई काम पड़वा पर बजारमें