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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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विरिया छ । अरु जो तू मतलबकी संगी छे तो थांरी तू जानें मैं थारा डिगाया क्यूं डिगशी म्हें तो थांरी दया कर तूने उपदेश दियो छे माने तो मान न मानें तो थांरी होनहार होसी सोही म्हारो तो कछू मतलब नाहीं । तासू अब तू म्हारा नषासुं जावो अपना परनाम शांत राख आकुलता मत करे । आकुलता ही संसारका कारन छे ऐसे स्त्री समझाकर सीख दीनी अब निज कुटुम्ब परवारको बुलाय समझावे अहो कुटुम्ब परवारके अब ई शरीरकी आयु तुच्छ रही है । अब म्हारे परलोक नजीक छे तासू अब में थाने कहा छा ते म्हांने कोई. बातका राग करो मति थांके अरु म्हांके चार दिनका मिलाप छ । जादा छे नाहीं। जैसे सराईके विषे राहगीर रात्रि भेला तिष्टे पछे वीछुरता दुख करे यह कौन सयान तासू छिमा भाव धारते सघला आनन्द रूप तष्टो अनुक्रम थकी सारानकी यही रीति होनी छे । सो यह संसारको चरित्र जान ऐसा बुद्धिवान कौन है सो जासूं प्रीति करै । ऐसे कुटुम्ब परवारकू समझाय सीख दीनी अब पुत्रकू बुलाय सम्झावे है । अहो पुत्र ते स्याना छै म्हासों कोई तरहको मोह कीनो मत अरु श्रींजिनेश्वरको भाषो धर्मनीके पालनो। थाने धर्म ही सुखकारी होयगो माता पिता सुखकारी नाहीं। अरु कोई मातापिताने सुखका कर्ता माने छे सो यह भी मोहका महातम छ । कोई किसीका कर्ता नाहीं कोई किसीका भोक्ता नाहीं सर्व ही पदार्थ अपना अपना स्वभावका भोगता करता छे। तासूं अब म्हें थांने कहा छा जो थें विवहार मात्र हमारी आज्ञा मानो छो तो मैं कहो सो. करों प्रथम थे देव अरु गुरु धर्मकी अब गाढ़ी