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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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सांत रूप हो है । सोई परम लाभ जानना ऐसा ही अनाद निधन निमित्त नैमित्तने लिया वस्तुका स्वभाव स्वयमेव बने है । जाके निवारने समर्थ कोई नाहीं । बहुरि और भी उदाहरन कहिये है । जैसे जलकी बूंद ताता तवा ऊपर परे तो नासने प्राप्त होय अरु सर्पका मुखने पड़े तो विष होय । कमलका पात्र ऊपर पड़े तो मोती सादृस्य सोभे सीपमें पड़े तो मोती ही होय । अमृत कुण्ड में पड़े तो अमृत होय इत्यादि अनेक निमित्त कर अनेक प्रकार जलकी बूंद परनवती देखिये । और भी अनेक पदार्थ नाना प्रकार के कारन कर और सों और परनवते देखिये है ताक अद्भुत विचित्रता केवली भगवान ही जाने लेस मात्र सम्यक दृष्टि पुरुष ही जाने यहां कोई प्रश्न करे प्रतिमाजी तो जड़ अचेतन हैं स्वर्ग मोक्ष कैसे देसी ताकूं कहिये है रे भाई प्रत्यक्ष ही संसार में अचेतन पदार्थ फलदाई देखिये है । चि तामन पारस कामधेनु चित्रावेल नव निधि जे अनेक वस्तु देते देखिये है बहुरि भोजन खाये क्षुधा मिटे है जल पिये तृषा मिटे औषधके निमित्तकर अनेक रोग सांत होय पाचों इन्द्रीनके विषयसे ये सुख होय चित्रामकी वा काष्ठकी पाषानकी अचेतन मूर्ति देखने में चेतन स्त्रीके निमितवत विकार परनाम होय हैं । साची स्त्री सरीखा पाप लागे है । त्योंही प्रतिमाजीकी पूजा स्तुति करना है । सो तीर्थकर महाराजके गुनाकी अनुमोदना है । जा पुरुषके गुनाकी अनुमोदना करे तो वाके गुन सादृस्य फल उत्पन्न होय औगुनवान पुरुषकी अनुमोदना किये पापका फल नरकादिक लागे त्यों ही धर्मात्मा पुरुषकी अनुमोदना किये धर्मका फल स्वर्ग मोक्ष