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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
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रूप श्रावक मुनिका आचरन वा मोक्षका मारग हे स्वामी थें कहो पुन्य पापका स्वरूप वा चार गतिका स्वरूप वा जीवदयाका स्वरूप वा देव गुरु धर्मका स्वरूप वा कुदेव कुगुरु कुधर्मका स्वरूप हे नाथ मोने कहो सम्यकदर्शक ज्ञान चारित्रका खरूप अतेन्द्री आनन्दमय निराकुलित अनोपम वाधा रहित अखंडित सास्वतो अवनासी आत्मीक सुखका स्वरूप हे भगवानजी थेहीं कहो धर्म ध्यान शुक्ल ध्यान आरतध्यान रौद्रध्यान हे प्रभूजी इनका स्वरूप कहो । जोतिष वा वैदिक वा मंत्र तंत्र जंत्र इनका स्वरूप कहो वा चौसठ रिद्ध वा तीनसे त्रेसठ कुवादिका स्वरूप भी कहो। अरु वारा अनुपेक्षा दसलक्षनी षोडस भावनाका स्वरूप अरु नोनय वा सप्तभंगी वानी अरु द्रव्यका सामान्यगुन अरु विसेष गुन ताका स्वरूप कहो वा अधोलोक वा मध्यलोक वा ऊर्धलोक ताकी रचना वा द्वादशांगका स्वरूप वा केवलका स्वरूप याने आदि दे सर्व तत्वका रूप जान्या चाहूं हूं अरु हे भगवानजी नर्क किसा पाप सो जाय है। तिर्यंच कैसा पाप सूं होय मनुष्य कैसा परनाम सूं होय । देव पर्याय कैसे परमान सू होय निगोद क्यों कर जाय एकेन्द्री विकलत्रय क्यों कर होय असैनी कैसा पाप सू होय सन्मूर्छन अलब्धि पर्याप्त सूक्ष्म वादर कैसा खोटा परनाम सूं होय आंधों बहरो गूगो लूलो कैसा पाप कर होय वावन कूवड़ो विकलिंगी अधिक अंगी कैसा पाप कर होय कोढ़ी दीर्घ रोमी दरिद्री कुरूपी शरीर कसा पाप सूं होय मिथ्याती कुविस्नी अन्यायमार्गी चोर निर्दई अदयावान धर्मसू परान्मुख पाप कार्यसो आसक्त अधोगामी कैसा पाप सूं होय । शीलवान संतोषी दयावान संयमी त्यागी वैरागी कुल