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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
वान पुन्यवान रूपवान निरोगी विचक्षन बुद्धिमान पंडित अनेक शास्त्रको पारगामी धीर वीर साहसी सज्जन सबका मन मोहन सबकूं प्यारा दानेश्वरी अर्हत देवका भक्ति सुगतिगामी कैसा पुन्य सों होय इत्यादि प्रश्नका दिव्यध्वनि करि स्वरूप सुन्या चाहूं हूं । सो मो पर अनुग्रह कर वा दया कर मेरे ताईं कहो अहो भगवानजी हमारा पूर्वला भव कहो अरु अनागत भव कहो अरु हे भगवानजी अब मेरे संसार के तो बाकी रहा अरु दिक्षा घर कब थां सारखा होहुंगा सो मो यथार्थ कहो हमारे यह जानवाकी घनी वांछा है । वा घनी अभिलाषा है। ऐसा प्रश्न पइ श्रीभगवाननीकी वानी खिरती हुईं अरु सर्व प्रश्नका उत्तर एक साथ ज्ञानमें भाषता भया ताके मुखकर सुनि अत्यंत तृप्ति भया पीछे स्वर्ग लोक गया पीछे कभी नन्दीसुरद्वीपमें जाय वा मेरुका चैत्याला जाइ प्रतिमाजीने बंद कभी अनेक प्रकारका भोग भोगवे कभी सभा में सिंहासन पर बैठे अरु राज्यकान करै कभी धर्मकथा करै । कभी चार जात वा सात जातकी सेन्या सज भगवानका पंचकल्याणकमें जाय वा वनादिमें क्रीड़ा करवाने जाय कभी देवांगना देव अंगुष्ट ऊपर नृत्य करें । कभी हथेली ऊपर कभी भुजा ऊपर कभी आंखकी भोंह ऊपर कभी आकाश में नृत्य करें कभी धरती में झुक जाय कभी अनेक शरीर बनाय लेय कभी बालक हो जाय कभी देवकी स्तुति करे । कांई स्तुति करे हे देव थाने देखवा कर नेत्र त्रप्त न होंय हे देव थांका गुनका चिन्तवन कर मन त्रप्ति नाहीं होंय । अरु हे देव था विना म्हांने कौन प्रीति उपजावे है । हे देव थांका दर्शन कर अत्यंत त्रप्ति होय । हे देव थांका संयोगको अंतर कभी मत करो। थांकी सेवा