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ज्ञानानन्द श्रावकाचार । जयवंती प्रवर्तो अरु थें जयवन्ता प्रवर्तो थे म्हाने कल्यानके कर्ता हो । अरु थे म्हांका मन वांछित मनोरथने पूरो । बहुरि कैसे हैं देव देवांगना जाके आंखका टमकार होय नाहीं । अरु शरीरकी छाया नाहीं अरु क्षुधा तृषा रोग नाही हजार वरस पीछे किंचित् मात्र क्षुधा लागे सो मनहीकर त्रप्ति होय हैं तातें क्षुधा नाहीं वे केई देव अनेक तरेका स्वांग ल्यावे अरु केईक देव सुगंधमई जल वरावे हैं । अरु केई इन्द्र ऊपर चमर ढोरे हैं। कैसे ढोरे मानू चमरके मिसकर नमस्कार करै हैं। कईक छत्र लिया केई देव आयुध लिये दरवाजा तिष्टें है। कैईक देव माहली सभामें तिष्टें । कैईक वारली सभामें तिष्टें कैईक विरदावली बोलें हैं। कैईक देव स्तुति करें हैं कैईक हाथ जोड़ वीनती करें हैं । कैईक देव अमोलक निधि ल्याइ नजर करें हैं। कैईक देव ऐसे कहें हैं हे प्रभो कौन धर्म किया था तातूं ऐसी रिद्ध पाई अरु मैं भी कौन पुन्य किया था ताकर ऐसा नाथ पाया अरु कैई देव तीखा कण्ठ सों राग गावें सो रागने गावे मानू या कहें हैं हे प्रभूजी म्हांपर प्रसन्न होहु हमारी सेवा दिस दखो अरु कैईक प्रश्न करे हैं हे प्रभू जीवको कल्यान कौन बात कर होय सो मोने कहो थें सबनमें ज्ञाता हो अरु विशेष पुन्यवान हो याने आदि देय अनेक प्रकारके कौतूहल कर वा नृत्य करवावै गान करि स्तुति करि अपन स्वामीने रिझावे या जानेके कोई प्रकार देव म्हांपर प्रसन्न होय बहुरि स्वर्ग में रातदिनका भेद नाहीं रतननकी जोति वा कल्पवृक्षनकी जोति वा सुभाव कर आकास निर्मलताके प्रभाव एकसां कोट्यां सूर्यका प्रकासने लियां सास्वता है । कैसा