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ज्ञानानन्द श्रावकाचार ।
अपना जान ममत्व करे हैं । अरु जाके जाते बहुत झूरें हैं अरु विशेष शोक करे हैं कांई शोक करे हैं हाय हाय मारा पुत्र तूं कहां गया हाय हाय म्हारा खामिंद तू कहां गया हाय हाय पुत्री तू कहां ई हाय हाय माता तू कहां गई हाय हाय पिता तू कहां गया हाय हाय द्रष्ट भ्राता तू कहां गया इत्यादि वे अज्ञानी पुरुष ऐसा विचार करे हैं अहो कौनका पुत्र कौनकी पुत्री कौन का खावंद कौनकी स्त्री कौनकी माता कौनका पिता कौनकी हवेली कौनका मंदिर कौनका धन कौनका माल कौनका आभरन कौनका वस्त्र इत्यादि सर्व सामग्री झूठी है। ऐ सामग्री किछू वस्तु नाहीं जैसे सुवा को राज वा इन्द्रजालका तमासा जैसे भूतकी माया जैसे आकास विषे वादरानकी सोभा ये सामग्री देखते तो नीकी लागे परन्तु वस्तु स्वभाव विचार तांकू भी नाहीं । जो वस्तु होती तो थिर होती नासने प्राप्त न होती तासूं मैं ऐसा जान सर्व त्रैलोक में पुलकीजेती ईक पर्याय है । ताका ममत्वने छोड़ हूं तैसे ही सरीरका ममत्व छोडू हूं जा सरीरके जाते मेरा परनाम में अस मात्र भी खेद नाहीं । ऐ सरीर दसा सामग्री है। सो चाहो ज्यों परनमों मेरा कछू भी परोजन नाहीं भावे क्षीजो भावे भजो भावे पर लेने प्राप्त होय भावे एकठां आन मिलो भावे जाती रहो हमारी क्यों भी मतलब नाहीं । अहो देखो मोहका महातम परतक्ष यह सामग्री पर वस्तु हैं । अरु तामें विनासीक है । अरु पर भवमें दुखदाई है । तो भी यह संसारी जीव अपना मान राख्या चा है । सो यह चरित्र मैं ज्ञाता भया देखूं हूं मेरा तो क्षोक्षा ज्ञान मात्र है ताह अवलोकों हों । अरु कालके आगमन सूं नाहीं